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अन्वयार्थ - (अत्थ) यहाँ (अज्ज वि जुण्णो थंभो ) आज भी पुराना स्तम्भ (हत्थलिहिदगंथो) हस्तलिखित ग्रन्थ भी है ( अदो) अतः (जिणवयणस्स खेत्तं ) जिनवचन के इस क्षेत्र की (सदा) हमेशा (भव्व) हे भव्य ( पुज्जदु वंददु) पूजा व वन्दना करो ।
अर्थ - यहाँ अंकलेश्वर में आज भी पुराना स्तम्भ और हस्तलिखित ग्रन्थ भी विद्यमान हैं, अतः जिनवाणी रचना के इस क्षेत्र की हे भव्यों सदा पूजा व वन्दना करो ।
यह अष्टक आचार्यश्री सुनीलसागर (ससंघ ) के अंकलेश्वर प्रवास के अवसर पर 2-12-2014 को रचा गया। आचार्य पुष्पदल - भूतबलि भवन का शिलान्यास भी किया गया।
108 :: सुनील प्राकृत समग्र