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रोग - मरी - दुर्भिक्ष न फैले, प्रजा शान्ति से जिया करे । परम अहिंसा धर्म जगत् में, फैल सर्व-हित किया करे ॥ लोए पसरदु पेम्मं, मोहो कुज्जेह पलायणं दूरा। अप्पिय-परुसो सद्दे, ण कोवि णियमुहेण उत्तेज्ज ॥ 21 ॥ फैले प्रेम परस्पर जग में, मोह दूर ही रहा करे । अप्रिय-कटुक-कठोर शब्द नहिं, कोई मुख से कहा करे ॥ वीरा य होंति सव्वे, देसुण्णदि-परायणं च तहा । वत्थुसरूवं णच्चा, सहंतु दुहाणि पमोदेणं ॥ 22 ॥
बनकर सब 'युगवीर' हृदय से, देशोन्नति - रत रहा करें। वस्तु स्वरूप विचार खुशी से, सब दुःख संकट सहा करें ॥
124:: सुनील प्राकृत समग्र