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डाकिनी, भूत, सर्पादि, प्रेतादि अथवा नरक - तिर्यंचादि कुयोनियों में जन्म लेते हैं । अर्थ - जो मनुष्य रात में भोजन खाता है वह निश्चित ही डाकिनी, भूत, सर्पादि, प्रेतादि अथवा नरक - तिर्यंचादि कुयोनियों में जन्म लेता है।
मक्खीओ कीड-केसे य, पयंगे किमि-मच्छरे ।
ते भुंजुंति कुणंति जे, रत्तीए भोयणं कुही ॥ 9 ॥
अन्वयार्थ - (जे) जो (कुही) कुधी ( रत्तीए भोयणं भुंजुंति) रात में भोजन करते हैं (ते) वे (मक्खीओ - कीड - केसे पयंगे किमि-मच्छरे भुंजुंति) मक्खियां, कीट, बाल, पतंगा, कृमि और मच्छर खाते हैं ।
अर्थ- जो खोटी बुद्धि वाले मनुष्य रात में भोजन करते हैं, वह मक्खियाँ, कीट, बाल, पतंगा, कृमि और मच्छर खाते हैं ।
सुज्ज-किरण-हीणंच, णाणा जीवेहि संजुदं ।
रोगकरं च उच्छिट्ठ, रत्तीए को हि भुंजदे ॥ 10 ॥
अन्वयार्थ – (सुज्ज - किरण हीणं) सूर्य किरण से रहित (य) और ( णाणा जीवेहि संजुदं) नाना जीवों से संयुक्त ( रत्तीए ) रात में (हि) वस्तुतः ( रोगकरं उच्छिट्ठ) रोग करने वाले उच्छिष्ट को (को) कौन बुद्धिमान (भुंजदे) खाता है ?
अर्थ- सूर्य किरण से रहित और नाना जीवों से संयुक्त रात में वस्तुतः उच्छिष्ठ [वमन] के समान रोग करने वाले भोजन को कौन बुद्धिमान खाता है ?
पडंति बहुसो जीवा, अण्णभायण - अग्गिसु । रत्तीए मंसदोसा हि, तो चएज णिसासणं ॥11 ॥
अन्वयार्थ - ( रत्तीए ) रात्रि में ( अण्णभायण - अग्गिसु) अन्नपात्र वा आग में (बहुसो जीवा पडंति) बहुत से जीव गिरते हैं [ जिससे ] (मंसदोसा) मांस का दोष दोष लगता है (तो) इसलिए (णिसासणं) रात्रि भोजन (चएज्ज) छोड़ो ।
अर्थ - रात्रि में अन्नपात्र में वा आग में बहुत से जीव गिरते हैं, जिससे मांस का दोष तथा हिंसा का दोष लगता है, इसलिए रात्रि भोजन का त्याग करो ।
अधम्मो रत्तिआहारो, धम्मो जो मण्णदि इमं । अजे पाव-कम्मं सो, णिप्फलं तस्स जीवणं ॥ 12 ॥
अन्वयार्थ - वस्तुतः ( रत्ति आहारो अधम्मो ) रात्रि भोजन अधर्म है किन्तु (जो इणं धम्मो मण्णदि) जो इसे धर्म मानता है [ सो] वह (पावकम्मं ) पाप कर्म को (अज्जेइ) अर्जित करता है ( तस्स जीवणं णिप्फलं ) उसका जीवन निष्फल है।
अर्थ - वस्तुतः रात्रि भोजन अधर्म है किन्तु जो इसे धर्म मानते हैं, वे कठोर पाप कर्मों, भयंकर दुःखदायी कर्मों को अर्जित करते हैं और उनका जीवन निष्फल होता है।
118 :: सुनील प्राकृत समग्र