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भव्वजणाणंकल्लाणत्थं, गुरुमुह-पव्वद-णीसरिदा। जरा-मरण-जर-दुक्खहारिणी, जयदु भारदी सारदा॥
णाण-णिज्झरी सव्वदा.॥७॥ अन्वयार्थ-(तिसिद सावगेहिं परिपीदा) तृषित श्रावकों द्वारा सब तरह से पी गयी (सुर-मणुजाणं वंदिदा) देवों मनुष्यों द्वारा वंदित (समिदि गुत्ति महव्वदपूदा) समिति गुप्ति व महाव्रतों से पवित्र (रयणत्तयेण मंडिदा) रत्नत्रय से मंडित (भव्वजणाणं कल्लाणत्थं) भव्यजनों के कल्याणार्थ (गुरु मुह पव्वद णीसरिदा) गुरु के मुखरूपी पर्वत से निसृत (जरा मरण जर दुक्ख-हारिदा) जन्म, जरा व मृत्यु के दुख को हरने वाली (भारदी सारदा) भारती शारदा (जयदु) जयवंत हो।
अर्थ-धर्म की प्यास से पिपासित श्रावकों के द्वारा पी गयी, सुर-मनुजों से वंदित, समिति-गुप्ति-महाव्रत से पवित्र तथा रत्नत्रय से मंडित गुरुओं के मुखरूपी पर्वत से भव्य जीवों के कल्याण हेतु निकलने वाली, जन्म-जरा-मृत्यु आदि दुःखों को हरने वाली, भारती-शारदा आदि नामों से युक्त वीतराग वाणी सदा जयवन्त हो।
सुददेवी अइवच्छलहिदया, धम्ममई सुहकारिणी। तमहरणी दिटिप्पगासिणी, मोक्खज-सुह-संचारिणी॥ पुण्णक्खर-लिहिदा सुदंसणा, आद-पुट्ठ-उटुंकिदा। मुणिविंदाणं जणणी सुहदा, जयदु भारदी सारदा॥
णाण-णिज्झरी सव्वदा.॥4॥ अन्वयार्थ-(सुददेवी सुदवच्छल हिदया) श्रुतवात्सल्य हृदय वाली श्रुतदेवी (धम्ममयी) धर्ममयी (सुहकारिणी) सुखकारी (तमहरणी) तमहारिणी (दिठिप्पगासिणी) दृष्टि प्रकाशनी (मोक्खज सुह संचारिणी) मोक्ष से उत्पन्न सुख का संचार करने वाली है (पुण्णक्खर लिहिदा) पुण्याक्षरों से लिखित (सुदंसणा) सुदर्शना (आद पुट्ठ उट्टंकिया) आत्मपृष्ठ पर उत्कीर्ण (मुणिविंदाणं) मुनिवृन्दों को (सुहदा) सुख देने वाली (जणणी) माता के समान (भारदी सारदा जयदु) भारती शारदा जयवंत हो।
अर्थ-श्रुतदेवी अत्यन्त वात्सल्यपूर्ण हृदय वाली, धर्ममय सुख को करने वाली, मोहरूपी अंधकार का हरण कर सम्यक्त्व रूपी दृष्टि को प्रकाशित करने वाली, सभी कर्मों से मुक्ति रूपी सुख का संचरण करने वाली, अत्यन्त सुंदर पुण्याक्षरों से लिखित, आत्म-पृष्ठ पर उत्कीर्ण करने योग्य, मुनियों को सुख देने वाली माता के समान है, ऐसी भारती तथा शारदा आदि नामों से युक्त वीतराग वाणी सदा जयवन्त हो।
वीदरागवाणी-त्थुदी :: 115