________________
हत्था ते सुकयत्था जे किदियम्मं कुणंति गुरुचरणे।
वाणी बहुगुणखाणी सुगुरुगुण-वण्णिदा जीए॥8॥ अन्वयार्थ-(हत्था ते सुकयत्था) वे हाथ सुकृतार्थ हैं (जे किदियम्मं कुणंति गुरुचरणे) जो गुरुचरणों में कृतिकर्म करते हैं (जीए) जिसके द्वारा (सुगुरुगुणवण्णिदा) सद्गुरुओं के गुण वर्णन किये जाते हैं (वाणी बहुगुणखाणी) वह वाणी बहुत गुणों की खान हैं।
__ अर्थ-वे हाथ सुकृतार्थ हैं जो गुरुचरणों कृतिकर्म करते हैं, वह वाणी बहुत गुणों की खान है जिसके द्वारा श्रेष्ठ गुरु के गुणों का वर्णन किया जाता है।
सो देसो सो णयरो सो गामो सो य मन्दिरो धण्णो।
जत्थ गुरुवरचरणा विहरंति सदा वि सुपसण्णा ॥१॥ अन्वयार्थ (सो देसो) वह देश, (सो णयरो) वह नगर, (सो गामो) वह ग्राम (सो य मन्दिरो) और वह मन्दिर (धण्णो) धन्य हैं (जत्थ) जहाँ (गुरुवरचरणा) गुरुवर चरण (सदा वि) हमेशा ही (सुपसण्णा) प्रसनन्नतापूर्वक (विहरंति) विहार करते हैं।
अर्थ-वह देश, नगर, ग्राम और मन्दिर (घर) धन्य हैं, जहाँ श्रेष्ठ गुरु के चरण हमेशा प्रसन्नतापूर्वक विहार करते हैं।
गुरु-माहप्पं :: 111