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जिनागम सियावादचिण्हजुत्तं गंभीरं सत्थविरोह-रहिदं च। जिणिंद-भासिद-सुत्तं, तिलोगमहिदं सुहकरं वंदामि ॥7॥
अन्वयार्थ-(सियावादिचिण्हजुत्तं) स्याद्वाद चिह्न युक्त (गम्भीरं) गंभीर (सत्थविरोह-रहिदं) शास्त्र-विरोध रहित (च) और (तिलोगमहिदं) त्रिलोकपूज्य (सुहकर) सुखकर (जिणिंद-भासिदसुत्तं) जिनेन्द्रभाषित सूत्र को वन्दन करता हूँ।
अर्थ-स्याद्वाद चिह्न युक्त, शास्त्र-विरोध रहित और त्रिलोकपूज्य सुखकर जिनेन्द्रभाषित सूत्र को मैं वन्दन करता हूँ।
जिनचैत्य सोम्मंगं सुहरूवं, पसंतवयणं च पाडिहेरजुदं।
अप्पाणंद-फुरंतं, जिणिंद-बिंबं सया वंदे॥8॥ अन्वयार्थ-(सोम्मंग) सौम्यांग (सुहरूवं) शुभरूप (पसंतवयणं) प्रशांत मुख (पाडिहेरजुदं) प्रातिहार्य युक्त (अप्पाणंद फुरंतं) आत्मानद को स्फुरायमान करती हुई (जिणिंद-बिंबं) जिनेन्द्र प्रतिमा को (सया वन्दे) सदा वन्दन करता हूँ।
__ अर्थ-सौम्य अंगों वाली, शुभरूप, प्रशांत मुद्रा वाली, अष्ट प्रातिहार्य युक्त तथा आत्मीय आनंद को स्फुरायमान करती हुई जिन प्रतिमाओं को मैं सदा वन्दन करता हूँ।
जिन चैत्यालय घंटा-तुरहि-पडाणं, सुह-सद्देहिं च णीर-गंधेहिं।
जत्थ जिणाणं पूजा, होदि य तं जिणगिहं वंदे॥9॥ अन्वयार्थ-(जत्थ) जहाँ पर (घंटा-तुरहि-पडाणं) घंटा, तुरही, पटह से (सुह-सद्देहिं च णीर गंधेहिं) शुभ शब्दों तथा नीर-गंध से (जिणाणं पूजा होदि) जिन पूजा होती है (तं) उस (जिणगिहं वंदे) जिनगृह को वन्दन करता हूँ।
अर्थ-जहाँ पर घंटा, तुरही, पटह, गीत, स्तुति-पूजा आदि के शुभ शब्दों से तथा जल-गंध आदि अष्टद्रव्यों से वीतरागी जिनेन्द्र भगवान की पूजा होती है, उन जिनमंदिरों को मैं वन्दन करता हूँ।
णवदेवों की संयुक्त स्तुति
(उपजाति-छन्द) जिणिंददेवं च सिद्धं किदत्थं, णिस्संग-सूरिं उवझाय-साई। जिणालयं धम्मरहं च सत्थं, णमामि सव्वं जिणचेइयं च 10॥
णव-देवदा-त्थुदी :: 87