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अर्थ-घर में धाराभिरूढ़ और अजस्र प्रवाही होने पर भी यदि सभा में प्रवर्तित नहीं होती है अथवा आचरण में प्रवर्तन नहीं करती है, तो उस विद्या से क्या काम?
संसारे विविहा विज्जा, भवब्भमण-कारणा।
सा विज्जा दुल्लहा णेया, भवबंधाण-भेदिणी॥8॥ अन्वयार्थ-(संसारे) संसार में (भवब्भमण-कारणा) भवभ्रमण कराने में कारणभूत (विविहा विज्जा) विविध विद्याएं हैं [किन्तु] (सा विज्जा दुल्लहा णेया) वह विद्या दुर्लभ जानो [जो] (भव-बन्धाणं भेदिणी) भव बंधन का भेदन करती है।
अर्थ संसार में भवभ्रमण कराने में कारणभूत विविध विद्याएँ हैं, किन्तु वह विद्या दुर्लभ जानो जो भव बंधन का भेदन करती है अथवा मोक्ष प्रदान करती है। अर्थात् मोक्ष सुख प्रदान करने वाली विद्या सम्पूर्ण लोक में अत्यन्त दुर्लभ है।
96 :: सुनील प्राकृत समग्र