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विज्जा-त्थुदी (विद्या-स्तुति, अनुष्टुप-छन्द)
विज्जा बंधू य मित्तं च, विज्जा कल्लाणकारिणी।
सहगामी-धणं विज्जा, विज्जा सव्वट्ठसाहिणी॥1॥ अन्वयार्थ-(विज्जा बन्धू य मित्तं) विद्या बन्धु है, मित्र है (विज्जा कल्लाणकारिणी) विद्या कल्याणकारिणी है (विज्जा सहगामी धणं) विद्या सहगामी धन है (च) और (विज्जा सव्वट्ठ साहिणी) विद्या सर्वार्थ-साधिनी है अर्थात् सभी प्रयोजनों को सिद्ध करने वाली है।
अर्थ-विद्या बन्धु है, मित्र है, विद्या कल्याणकारिणी है, विद्या सहगामी धन है और विद्या सर्वार्थ-साधिनी है अर्थात् सभी प्रयोजनों को सिद्ध करने वाली है।
विज्जा कामदुहाधेणू, विज्जा चिंतामणिसमा।
सग्ग-मोक्खं च साहेदि, णरस्स देदि सम्पदं ॥2॥ अन्वयार्थ-(विज्जा कामदुहा घेणू) विद्या कामधेनु के समान है (विज्जा चिंतामणि समा) विद्या चिन्तामणि के समान है (सग्ग-मोक्खं साहेदि) स्वर्ग, मोक्ष को साधती है (च) और (णरस्स) आराधक मनुष्य को (संपदं देदि) संपदा प्रदान करती है।
अर्थ-विद्या कामधेनु के समान है, विद्या चिन्तामणि के समान है; स्वर्ग, मोक्ष को साधती है और आराधक मनुष्य को इह-पर लोक में संपदा प्रदान करती
है।
विज्जा जसकरी पुंसं, विज्जा सेयंकरी सदा।
सम्मं आराहिदा विज्जा, पुत्तं मादा व रक्खदि॥3॥ अन्वयार्थ-(पुंसं) मनुष्यों को (विज्जा) विद्या (जसकरी) यश देने वाली है, (विज्जा सेयंकरी सदा) विद्या हमेशा श्रेयस्कारी है, (सम्मं आराहिदा विज्जा) सम्यक् प्रकार से आराधित विद्या (पुत्तं मादा व रक्खदि) पुत्र की माता के समान रक्षा करती है।
94 :: सुनील प्राकृत समग्र