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वाले हैं किन्तु धर्मरूपी हाथ का अवलम्बन देकर जीवों को सच्चे गुरु संसार से तारते
णिग्गंथ-सेवगो धीरो, अप्पकल्लाण-इच्छुगो।
ईसरत्तं च पाऊण, सग्ग-मोक्खं च पावदि॥8॥ अन्वयार्थ-(णिग्गंथ-सेवगो) निग्रंथ-सेवक(धीरो) धीर (च) तथा (अप्पकल्लाण इच्छुगो) आत्मकल्याण का इच्छुक जीव (ईसरत्तं पाऊण) विविध ऐश्वर्य को पाकर (सग्ग-मोक्खं च पावदि) स्वर्ग और मोक्ष को पाता है।
__ अर्थ-निग्रंथ-सेवक अर्थात् दिगम्बर गुरुओं का सेवक धीर तथा आत्मकल्याण का इच्छुक जीव विविध ऐश्वर्य को पाकर, स्वर्ग और मोक्ष को पाता है।
गुरु-त्थुदी :: 99