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महावीर-अट्ठगं (महावीर अष्टक, मालिनी छन्द)
जणणजलहिसेदू दुक्खविद्धंसहेदू,
णिहदमयरकेदूवारिदाणिट्ठहेदू। समरसभरचेदाणट्ठणीसेसधादू,
जयदुजगदि णिच्चं वड्ढमाणो जिणिंदो॥ अन्वयार्थ-(जणणजलहिसेदू) जन्मरूपी समुद्र के लिए सेतु के समान (दुक्ख विद्धंस हेदू) दु:ख का नाश करने वाले हेतु (णिहदमयरकेद्र) कामदेव के नाशक (वारिदाणिठ्ठ हेदू) अनिष्ट हेतु के निवारक (समरसभरचेदू) समरस से भरे हुए चेता (णट्ठणीसेसधादू) शरीर स्थित रसादि धातुओं के नाशक (जगदि) जगत में (वड्ढमाणो जिणिंदो) वर्धमान जिनेन्द्र (णिच्चं) नित्य (जयदु) जयवंत हों।
अर्थ-जन्मरूपी समुद्र के लिए सेतु, दुःखनाशक हेतु, कामदेव के नाशक, अनिष्ट हेतु के निवारक, समरस से भरे हुए चेता (ज्ञाता) शरीर स्थित रसादि धातुओं के नाशक वर्धमान जिनेन्द्र जगत में नित्य जयवंत हों। सम-दम-जम-धत्ता मोहसंतावहत्ता,
सयलभुवणभत्ता सव्वकल्लाणकत्ता। परमसुहसुजुत्ता सव्वसंदेहहंता,
__ जयदु जगदि णिच्चं वड्ढमाणो जिणिंदो॥2॥ अन्वयार्थ-(समदम-जम-धत्ता) सम-दम-यम-धर्ता (मोहसंताव हत्ता) मोह संताप हर्ता (सयल भुवणभत्ता) सकल भुवन के स्वामी (सव्वकल्लाणकत्ता) सबका कल्याण करने वाले (परम सुह सुजुत्ता) परम सुख संयुक्त (सव्वसन्देह हन्ता) सर्व सन्देह के हर्ता (वड्ढमाणो जिणिंदो) वर्धमान जिनेन्द्र (जगदि) जगत में (णिच्चं) नित्य (जयदु) जयंवन्त हों।
अर्थ-सम-दम-यम के धारक व उपदेशक, मोह सन्ताप के हरने वाले, सकल जगत के स्वामी, सबका कल्याण करने वाले, परम सुख संयुक्त, सर्व सन्देह के हर्ता वर्धमान जिनेन्द्र जगत में जयवंत हों।
महावीर-अट्ठगं :: 81