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जल से अभिषेक किया था तथा कालान्तर में चम्पापुरी में ही जिन्होंने क्रमशः पंचकल्याणक प्राप्त किए उन वासुपूज्य भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ ।
णाणस्सहावं च अप्पस्सरूवं, झाणव्वदं गुण- संपुण्णधारिं । मिच्छत्तघादिं सिवसोक्खभोगिं, जिणिंददेवं विमलं णमामि ॥13 ॥
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अन्वयार्थ – (णाणस्सहावं ) ज्ञान - स्वभावी (अप्पस्सरूवं) आत्मस्वरूपी ( झाणव्वदं) ध्यान, व्रत आदि (गुण-संपुण्णधारिं) सम्पूर्ण गुणों के धारी (मिच्छत्तघादी) मिथ्यात्व का घात करने वाले (य) और (सिवसोक्ख भोगि) मोक्षसुख के अधिकारी (जिणिंद देवं विमलं णमामि ) जिनेन्द्रदेव विमलनाथ को नमन करता हूँ ।
अर्थ – ज्ञानस्वभाव, आत्मस्वरूप, ध्यान, व्रत, सम्पूर्ण गुणों के धारी तथा मिथ्यात्व का घात करने वाले और मोक्षसुख का भोग करने वाले जिनेन्द्र देव विमलनाथ को मैं नमन करता हूँ ।
झाणग्गिणा जेण डहिज्ज कम्मं, अप्पसरूवं सुहदं च पत्तं । अनंत-जीवाण-कल्लाण- कत्तं वंदे अणंतं गुण-णंत-पत्तं ॥14॥
अन्वयार्थ- - (जेण) जिन्होंने (झाणग्गिणा) ध्यानाग्नि से (कम्मं डहिज्ज ) कर्म जलाकर (सुहदं) सुखद (अप्पसरूवं) आत्मस्वरूप (धम्मं ) धर्म को (पत्तं ) प्राप्त किया [उन] (अणंत जीवाण) अनंत जीवों का (कल्लाण-कत्तं) कल्याण करने वाले (गुणणंत पत्तं) अनन्त गुणों को प्राप्त (वंदे अनंतं) अनंतनाथ जिनेन्द्र को नमन करता हूँ।
अर्थ – जिन्होंने ध्यानाग्नि से कर्म जलाकर आत्मस्वरूप धर्म को प्राप्त किया है, उन अनंत जीवों का कल्याण करने वाले तथा अनन्त गुणों को प्राप्त अनंतनाथ जिनेन्द्र को मैं नमन करता हूँ।
अब्धिंतरं बज्झमणेग-भेदं चत्तूण सम्मं च परिग्गहं च । धम्मोवदिट्ठे च सुमग्गसिट्ठ, धम्मस्स तं धम्मणाहं णमामि ॥15 ॥
अन्वयार्थ – [ जिन्होंने] (अब्धिंतरं बज्झमणेग-भेदं) आभ्यन्तर [ और ] बाह्य के अनेक भेदों से युक्त (परिग्गहं) सभी परिग्रह को (सम्मं चत्तूण) पूरी तरह छोड़कर (धम्मोवदिट्ठ) धर्मोपदेश दिया (च) और (सम्मग्गसिट्ठ) सन्मार्ग रचा (धम्मस्स) धर्म की प्राप्ति के लिए [मैं] (तं) उन (धम्मणाहं ) धर्मनाथ जिनेन्द्र को (णमामि ) नमन करता हूँ।
अर्थ — जिन्होंने आभ्यन्तर और बाह्य के अनेक भेदों से युक्त सभी परिग्रह
66 :: सुनील प्राकृत समग्र