________________
वड्ढमाण-त्थुदी (वर्धमान-स्तुति, उपजाति-छन्द)
सिद्धत्थ-णंदं तिसलासुपुत्तं, गब्भादि-पंचेहि कल्लाणजुत्तं। कुंदप्पहे कुंडपुरे य जादं, णमामि णिच्चं सिरि-वड्ढमाणं॥॥
अन्वयार्थ-(सिद्धत्थणंदं) महाराज सिद्धार्थ के नन्दन (तिसला सुपुत्तं) महारानी त्रिशला के सुपुत्र (गब्भादिपंचेहिकल्लाण-जुत्तं) गर्भादि पंचकल्याणकों से युक्त (य) और (कुंदप्पहे कुंडपुरे) कुंदप्रभा वाले कुंडलपुर में (जादं) जन्म लेने वाले (सिरि-वड्ढमाणं) श्री वर्धमान जिनेन्द्र को [मैं] (णिच्चं) नित्य (णमामि) नमन करता हूँ।
अर्थ-महाराज सिद्धार्थ के नन्दन महारानी त्रिशला के सुपुत्र, गर्भादि पंचकल्याणकों से युक्त और कुंदप्रभा वाले, कुंडलपुर में जन्म लेने वाले श्री वर्धमान जिनेन्द्र को मैं नित्य नमन करता हूँ।
अणोवमं णिम्मल-देह-धारिं, अणंत-जीवाण दुहावहारिं। सुरासुरेहिं मणुजेहिं पुज्ज, णमामि णिच्चं सिरि-वड्ढमाणं ॥2॥
अन्वयार्थ-(अणोवमं णिम्मल देह धारिं) अनुपम निर्मल शरीर के धारी (अणंत जीवाण दुक्खावहारिं) अनंत जीवों के दु:खों को हरने वाले (सुरासुरेहिं मणुजेहि पुज्ज) सुर असुर [तथा] मनुष्यों के द्वारा पूज्य (सिरि वड्ढमाणं) श्री वर्धमान जिनेन्द्र को [मैं] (णिच्चं) नित्य (णमामि) नमन करता हूँ।
अर्थ-जो अनुपम निर्मल शरीर के धारी हैं, अनंत जीवों के दुःखों को हरने वाले हैं सुर-असुर [तथा] मनुष्यों के द्वारा पूज्य हैं, उन श्री वर्धमान जिनेन्द्र को मैं नित्य नमन करता हूँ।
जस्सच्चा-भावेण पमोदजुत्तो, भेगो य आसी य सुरत्तपत्तो। पहाणुगामी लहदे गुणाणिं, णमामि णिच्चं सिरि-वड्ढमाणं॥3॥
अन्वयार्थ-(जस्सच्चाभावेण) जिनकी पूजा के भाव से (पमोदजुत्तो) प्रमोद युक्त (भेगो) मेंढक(सुरत्तपत्तो) देवत्व को प्राप्त (आसी) हुआ था (य) और
वड्ढमाण-त्थुदी :: 53