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अर्थ-जिनेन्द्र भगवान के दर्शन से विघ्न नष्ट हो जाते हैं; भय नहीं आते हैं, न छुद्रदेव ही परेशान करते हैं अपितु जिनभक्ति से मनुष्य यथेष्ट धन को पाते हैं और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
मूगा य बोलंति पंगू चलंति, पस्संति अंधा बहिरा सुणंति। जस्सप्पसादेण णसंति विग्घा, णमामि तं हं भयवं जिणिंदं ॥4॥
अन्वयार्थ-(जस्सप्पसादेण) जिनके प्रसाद से (मूगा बोलंति) मूक बोलते हैं (पंगू चलंति) पंगु चलते हैं (पस्संति अंधा) अन्धे देखते हैं (बहिरा सुणंति) बहरे सुनते हैं (य) और (णसंति विग्घा) विघ्न नष्ट होते हैं (तं) उन (जिणिंदं भयवं) जिनेन्द्र भगवान को (हं) मैं (णमामि) नमन करता हूँ।
__अर्थ-जिनके प्रसाद से मूक मनुष्य बोलते हैं, पंगु चलते हैं, अन्धे देखते हैं, बहरे सुनते हैं तथा समस्त विघ्न नष्ट हो जाते हैं उन जिनेन्द्र भगवान को मैं नित्य नमन करता हूँ।
रोगा ण पस्संति रुट्ठा समाणा, पस्सेदि दूरा चगिदं दलिदं। सत्तूसमाणा-कुगदी णसेदि, णमस्सणेणं जिणदंसणेणं ॥5॥
अन्वयार्थ-(जिण-दंसणेणं) जिनेन्द्र देव के दर्शन से (णमस्सणेणं) नमस्कार करने से (रोगा ण पस्सेदि रुट्ठा समाणा) रोग रुष्ट हुए के समान नहीं देखते हैं (दलिद पस्संति चगिदा हि दूरा) दारिद्र चकित हुए के समान दूर से देखता है (कुगदी णसेदि सत्तू समाणा) कुगति शत्रु के समान नष्ट हो जाती है।
अर्थ-जिनेन्द्र देव के दर्शन से तथा नमस्कार करने से रोग कुपित हुए के समान जिनभक्त को नहीं देखते हैं, दारिद्र चकित हुए के समान दूर से देखता है अर्थात् निर्धनता पास नहीं आती तथा कुगति शत्रु के समान नष्ट हो जाती है।
बंहा य विण्हू सिव-विस्सकम्मा, बुद्धो गणेसो जिणणामजुत्तो। रामो हरी सव्व-वियारहीणा, णमामि णिच्चं भयवं जिणिंदं ॥6॥
अन्वयार्थ-(सव्ववियारहीणा) सब विकारों से रहित (बंहा विण्हू सिवविस्सकम्मा बुद्धो गणेसो य) ब्रह्मा, विष्णु, शिव, विश्वकर्मा, बुद्ध, गणेश (रामो हरी) राम, हरि (य) और (जिणणामजुत्तो) जिन नाम से युक्त (जिणिंदभयवं) जिनेन्द्र भगवान को [ मैं] (णिच्चं णमामि) नित्य नमन करता हूँ।
अर्थ-जिन्होंने नष्ट कर दिए हैं ज्ञानावरणादि समस्त कर्म विकार ऐसे ब्रह्मा, विष्णु, शिव, विश्वकर्मा, बुद्ध, गणेश, राम, हरि और जिन आदि नामों से युक्त जिनेन्द्र भगवान को मैं नित्य नमन करता हूँ।
60 :: सुनील प्राकृत समग्र