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णय मद-मल-रेहा णो कसायादि दोसा, ण य मरण- जरा णो जम्मं च णत्थि जस्स । विसद - विमल - बोहो सम्मदिट्ठीजुदो जो, भुवण-मउडरूवं गोम्मटेसं णमामि ॥16 ॥
अन्वयार्थ – [ जिनके ] ( ण य मद-मल - रेहा ) मद-मल की रेखा नहीं है (णो कसायादि दोसा) न कषाय आदि दोष हैं ( ण य मरण - जरा णो ) न मरण व बुढ़ापा है (जम्मं च जस्स णत्थि) और जन्म भी जिसके नहीं है [ किन्तु ] ( विसद - विमल-बोहो सम्मदिट्ठी जुदो जो ) जो विशद विमल बोध युक्त सम्यग्दृष्टि वाले हैं [उन] (भुवण मउडरूवं) भुवन के मुकुट स्वरूप ( गोम्मटेसं णमामि ) गोम्मटेश को नमन करता हूँ।
अर्थ - जिनके मद रूपी मल की रेखा नहीं है, कषाय आदि दोष नहीं हैं; जन्म, मरण व बुढ़ापा जिनके नहीं हैं, जो स्पष्ट व निर्मल बोध युक्त सम्यग्दृष्टि वाले हैं, उन भुवन तल के मुकुट स्वरूप गोम्मटेश्वर बाहुबली भगवान को मैं नमन करता हूँ ।
सुर-र-णयणेहिं पूजिदा जस्स मुत्ती, णिहिल-मुणिवरेहिं अच्चिदा जस्स कित्ती । विमल - करुण-भावं रक्खदे जीवलोगं, भुवण-मउडरूवं गोम्मटेसं णमामि ॥7 ॥
अन्वयार्थ – (जस्स मुत्ती) जिनकी मूर्ति ( सुरणर-णयणेहिं ) सुर-नरों के नयनों से (पूजिदा) पूजित है (जस्स कित्ती ) जिनकी कीर्ति ( णिहिल मुणिवरेहिं) समस्त मुनिवरों से (अच्चिदा) अर्चित है (विमल करुण भावो) विमल करुण भावों से जो (जीवलोगं रक्खदे) जीवलोक की रक्षा करते हैं [ उन] (भुवणमउडरूवं गोम्मटेसं णमामि) भुवन के मुकुट स्वरूप गोम्मटेश को मैं नमन करता हूँ ।
अर्थ – जिनकी मूर्ति देव व मनुष्यों के नयनों से पूजित है, जिनकी कीर्ति सम्पूर्ण मुनिवरों के द्वारा अर्चित है, निर्मल करुणाभाव से जो जीवलोक की रक्षा करते हैं, उन भुवन तल के मुकुट स्वरूप गोम्मटेश्वर बाहुबली भगवान को मैं नमन करता हूँ ।
पयड-विमल-रम्मं जहाजा सरूवं, किद - बरिसुववासं अप्पलीणं सहावं । रहिदसयलसंगं, वीदरागं णिसल्लं, भुवण-मउडरूवं गोमटेसं णमामि ॥8 ॥
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अन्वयार्थ – [ जिनका] (पयड - विमल - रम्मं ) प्रकट विमल रमणीय (जहाजाद सरूवं) यथाजात रूप है ( किद बारिसुववासं) जिन्होंने एक वर्ष के उपवास किए (अप्पलीणं सहावं) आत्मलीन स्वभाव वाले ( रहिद सयलसंगं) सकलसंग से रहित (वीतरागं णिसल्लं) वीतराग निःशल्य (भुवणमउडरूवं गोम्मटेसं णमामि ) भुवन के मुकुट स्वरूप गोम्मटेश को मैं नमन करता हूँ ।
अर्थ - जिनका प्रकट, विमल, रमणीय यथाजात रूप है, जिन्होंने एक वर्ष के उपवास किए व जो आत्मलीन स्वभाव वाले हैं, सम्पूर्ण परिग्रह से रहित वीतरागी निःशल्य हैं, उन भुवन के मुकुट स्वरूप गोम्मटेश्वर बाहुबली जिनेन्द्र को मैं नमन करता हूँ।
गोम्मटेस - अट्ठगं :: 37