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वासुपुज्ज-त्थुदी
(वासुपूज्य स्तुति, उपजाति छन्द)
जयावदी वा वसुपुज्ज - पुत्तं । चंपापुरी य सुजम्म- जादो ॥ तत्थेव पंचण्ह-कल्लाण-पत्तं । तं वासुपुज्जं पणमामि पुज्जं ॥1 ॥
अन्वयार्थ – (जयावदी वा वसुपुज्ज - पुत्तं) जयवती तथा वसुपूज्य राजा के पुत्र, (चंपापुरीए य सुजम्म जादो) जिनका चंपापुरी में श्रेष्ठ जन्म हुआ, (तत्थेव पंचण्ह-कल्लाण-पत्तं) वहीं से पाँचों कल्याण को प्राप्त, (तं वासुपुज्जं पणमामि पुज्जं) उन पूज्य वासुपूज्य भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ ।
अर्थ - जयवती तथा वसुपूज्य राजा के पुत्र, जिनका चंपापुरी में श्रेष्ठ जन्म हुआ, वहीं से पाँचों कल्याण को प्राप्त उन पूज्य वासुपूज्य को मैं प्रणाम करता हूँ ।
40 :: सुनील प्राकृत समग्र
पोम्मपहं लच्छी णिवास ठाणं । पंचक्ख-जेदं महिसंक जुत्तं ॥ णिरंबरं सोम-मदीद - मोहं । तं वासुपुज्जं पणमामि पुजं ॥2 ॥
अन्वयार्थ - ( पोम्मपहं लच्छी णिवास ठाणं) पद्य के समान प्रभावाले, लक्ष्मी के निवास स्थान, (पंचक्ख-जेदं महिसंक जुत्तं ) पंचेन्द्रियों को जीतनेवाले, भैंसा चिह्न से युक्त, ( णिरंबरं सोम-मदीद मोहं) निरंबर सौम्य मोहरहित (तं ) उन (पुज्जं) पूज्य (वासुपुज्जं पणमामि ) वासुपूज्य भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ ।
अर्थ - पद्म के समान प्रभावाले, लक्ष्मी के निवास स्थान, पंचेन्द्रियों को जीतनेवाले भैंसा चिह्न से युक्त, निरंबर सौम्य मोहरहित उन पूज्य वासुपूज्य भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ ।
जिदांतगं बम्महमाण- घादं । भव्वांबुजाणीग-विवोहगं च ॥
देविंद - पुज्जं भुवणत्तयेसं । तं वासुपुज्जं पणमामि पुज्जं ॥3 ॥