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मल्लिणाह-त्थुदी (मल्लिनाथ स्तुति, मालिनी छन्द)
पहदमदणचावं केवलण्णाण-रूवं। कणयणियर-देहं सोम्मभावाणुगेहं॥ सुचरिद-गुण-पूरं पंचसंसार-दूरं।
विगद-रयकलावंमल्लिणाहंणमामि॥ अन्वयार्थ-(पहदमदणचावं) जिनने कामदेव के धनुष को नष्ट किया, (केवलण्णाण-रूवं) जो केवलज्ञान रूप हैं, (कणयणियर-देहं) स्वर्ण के समान जिनका देह है, (सोम्मभावाणुगेहं) सौम्यभाव के गृह स्वरूप, (सुचरिद-गुण-पूरं) सुचरितगुणों से पूर्ण (पंचसंसार-दूरं) पाँच प्रकार के संसार से दूर, (विगद-रयकलावं) कर्ममल समूह से रहित (मल्लिणाहं णमामि) मल्लिनाथ भगवान को मैं नमन करता हूँ।
अर्थ-जिनने कामदेव के धनुष को नष्ट किया, जो केवलज्ञान रूप हैं, स्वर्ण के समान जिनका देह है, सौम्यभाव के गृह स्वरूप, सुचरितगुणों से पूर्ण, पाँच प्रकार के संसार से दूर, कर्ममल समूह से रहित, मल्लिनाथ भगवान को मैं नमन करता हूँ।
सयल-सुयणसामिणट्ठणीसेसतावं, भवभमण-कुढारं सव्वदुक्खावहारिं। अतुलित-बलजुत्तं कम्मसत्तुप्पमुत्तं,
विगद-रयकलावं मल्लिणाहणमामि। ॥ अन्वयार्थ-(सयल-सुयणसामि) सकल सुजनों के स्वामी, (णट्ठणीसेसतावं) सर्व संतापों को नष्ट कर देनेवाले, (भवभमण-कुढारं) भवभ्रमण के लिए कुठार, (सव्वदुक्खावहारिं) सर्व दुखों को हरने वाले, (अतुलित बलजुत्तं) अतुल्य बल से युक्त, (कम्मसत्तुप्पमुत्तं) कर्म शत्रु से प्रमुक्त (विगद-रयकलावं) कर्ममल समूह से रहित (मल्लिणाहं णमामि) मल्लिनाथ भगवान को मैं नमन करता हूँ।
अर्थ-सकल सुजनों के स्वामी, सर्व संतापों को नष्ट कर देनेवाले, भवभ्रमण के लिए कुठार, सर्व दुखों को हरने वाले, अतुल्य बल से युक्त, कर्म शत्रु से प्रमुक्त कर्ममल समूह से रहित, मल्लिनाथ भगवान को मैं नमन करता हूँ। 42 :: सुनील प्राकृत समग्र