________________
अन्वयार्थ-(जिदांतगं) मृत्यु को जीतने वाले, (बम्महमाण-घादं) काम के मान का घात करने वाले, (भव्वांबुजाणीग-विवोहगं च) भव्यरूपी कमल समूह को प्रबोधन करने वाले, (देविंदपुजं) देवेन्द्र पूज्य (च) और (भुवणत्तयेसं) तीन भुवनलोक के स्वामी (तं) उन (पुजं) पूज्य (वासुपुजं पणमामि) वासुपूज्य भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ।
___ अर्थ-मृत्यु को जीतने वाले, काम के मान का घात करने वाले, भव्यरूपी कमल समूह को प्रबोधन करने वाले, देवेन्द्र पूज्य और तीनभुवन के स्वामी उन पूज्य वासुपूज्य भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ।
कुमग्गणिण्णासणंच समत्थं। पुरत्तयं धंसकरं वरेण्णं॥
गंत-विजा-पगासगं च ।
तं वासुपुजं पणमामि पुजं॥4॥ अन्वयार्थ-(कुमग्गणिण्णासणं च समत्थं) कुमार्ग को नष्ट करने में समर्थ, (पुरत्तयं) जन्म, जरा, मृत्युरूपी तीन नगरों को (धंसकरं वरेण्णं) ध्वंस करने वाले पूज्यातिपूज्य, (णेगंत-विज्जा पगासगं च) अनेकांत विद्या का प्रकाशन करने वाले (तं) उन (पुजं) पूज्य (वासुपुजं पणमामि) वासुपूज्य भगवान को (प्रणमामि) प्रणाम करता हूँ।
अर्थ-कुमार्ग को नष्ट करने में समर्थ; जन्म, जरा, मृत्युरूपी तीन नगरों को ध्वंस करने वाले पूज्यातिपूज्य, अनेकांत विद्या का प्रकाशन करने वाले उन पूज्य वासुपूज्य भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ।
णिराकिदासेस-विवक्खवग्गं। पयासिदा सेट्ठ-सुधम्ममग्गं॥ णिरंजणं संत-मणेगमेगं।
तं वासुपुजं पणमामि पुजं ॥5॥ अन्वयार्थ-(णिराकिदासेस-विवक्खवग्गं) संपूर्ण विपक्ष वर्ग का निराकरण करके, (पयासिदा सेट्ठ-सुधम्ममग्गं) श्रेष्ठ सुधर्म मार्ग के प्रकाशक (णिरंजणं संतमणेगमेगं) निरंजन, शांत, अनेक व एकरूप (णेगंत-विज्जा पगासगं च) अनेकांत विद्या का प्रकाशन करने वाले (तं वासुपुजं पणमामि पुजं) उन पूज्य वासुपूज्य भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ।
अर्थ-सम्पूर्ण विपक्ष का निराकरण करके श्रेष्ठ सुधर्म मार्ग के प्रकाशक, निरंजन, शांत, अनेक व एकरूप श्री वासुपूज्य भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ।
वासुपुज-त्थुदी :: 41