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तणु-विहव-अतुल्लंभासुरंसोम-मुद्दा, विलसदि दुवि बाहूहत्थीसुंढव्व दिग्धं । पिठि-पडलसमीवे इंदवज्जं वि हीणं, भुवण-मउडरूवं गोम्मटेसं णमामि॥3॥
अन्वयार्थ-(तणु-विहव-अतुल्लं) [जिनके शरीर का अतुल्य वैभव (भासुरं सोम मुद्दा) भास्वर सौम्य मुद्रा (विलसदि दुवि बाहू हत्थीसुंढव्व दिग्घं) हाथी की सूंड़ के समान दोनों हाथ सुशोभित हैं [तथा जिनके] (पिठि पडल समीवे) पृष्ठपटल के समीप (इंदवज्जं वि हीणं) इन्द्रवज्र भी हीन है (भुवण मउडरूवं) [उन] भुवन के मुकुट स्वरूप (गोम्मटेसं णमामि) गोम्मटेश को नमन करता हूँ।
अर्थ-जिनके शरीर का वैभव अतुल्य है, जिनकी मुखमुद्रा उगते हुए सूर्य के समान सौम्य है, जिनके लटकते हुए दोनों बाहु हाथी की सूड़ के समान लम्बे हैं, जिनके पृष्ठ-पटल के सामने इन्द्र का वज्र भी हीन है, उन भुवनतल के मुकुट स्वरूप गोम्मटेश्वर बाहुबली जिनेन्द्र को मैं नमन करता हूँ।
अगणिदससिलेहा कंतिहीणा भवंति, सुहचरणणहाणं चंदगाणं समीवे। तह य सयलमुद्दा देदि मोक्खस्स दिठिं, भुवण-मउडरूवं गोम्मटेसं णमामि॥4॥
अन्वयार्थ-जिनके (सुह चरणणहाणं चंदगाणं समीवे) शुभ चरणनखरूपी चन्द्रकों के समीप (अगणिद ससिलेहा कंतिहीणा भवंति) अगणित चन्द्र किरणें कांति हीन हो जाती हैं (तह य) और (सयल मुद्दा देदि मोक्खस्स दिट्ठी) जिनकी सकलमुद्रा मोक्ष की दृष्टि प्रदान करती है [उन] (भुवणमउडरूवं गोम्मटेसं णमामि) भुवन के मुकुट स्वरूप गोम्मटेश को मैं नमन करता हूँ।
अर्थ-जिनके शुभ चरणों की अंगुलियों में शोभित नखों के पास अगणित चन्द्र किरणें कांतिहीन हो जाती हैं तथा जिनकी सम्पूर्ण मुद्रा मोक्षमार्ग की दृष्टि प्रदान करती है, उन भुवन तल के मुकुट स्वरूप गोम्मटेश्वर बाहुबली जिनेन्द्र को मैं नमन करता हूँ।
दमयदि मयणस्स पंचवाणं समूलं, वितरदि भविजीवं सेट्ठ-सम्मं सुहं च। दलदि कलुसपुंजं रक्खदे सजणाणं, भुवण-मउडरूवं गोम्मटेसं णमामि॥5॥
अन्वयार्थ-(मयणस्स पंचवाणं) मदन के पंच बाणों को (समूलं) जड़ से (दमयदि) दमित करने वाले (भविजीवं) भव्यजीवों को (सेट्ठ सम्मं सुहं च) श्रेष्ठ
और सच्चा सुख (वितरदि) बाँटने वाले (कलुसपुंजे) कालुष्य पुंज को (दलदि) नष्ट करने वाले (सज्जणाणं) सज्जनों की (रक्खदे) रक्षा करते हैं (भुवण-मउडरूवं) भुवन के मुकुट स्वरूप (गोम्मटेसं णमामि) गोम्मटेश को नमन करता हूँ।
अर्थ-जो सेना सहित मदन (कामदेव) को जड़ से दमन करते हैं, भव्य जीवों को श्रेष्ठ व सम्यक् सुख देते हैं, कलुषित कर्मपुंज को नष्ट करते हैं तथा सज्जनों की रक्षा करते हैं, उन भुवन तल के मुकुट स्वरूप गोम्मटेश्वर बाहुबली जिनेन्द्र को मैं नमन करता हूँ। 36 :: सुनील प्राकृत समग्र