Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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विश्व रचना, व्यवस्था का परिदृश्य एवं संतुलन की सुई
चरित्र विकार क्या है और क्यों है?
विश्व रचना और वर्तमान
समय की नदी में कितना पानी बह गया, कितना अटक गया
और कितना बह रहा है, निरन्तर कभी पानी से पनीले दिखाई दिये मोती, मानुष, चून पानी उड़ गया कभी किसी का, कभी किसी का आंधियाँ चली, बवंडर आये, बह गया खून और आज भी समय की नदी में दुनियां की नाव डोल रही है अन्तराल गहरा है है किनारा बहुत दूर मांडी की थकावट बोल रही है घनघोर घटा, अंधियारा भीषण टूटती नाव रही मुसाफिरों को झकझोर तन-मन उरवड़ें हैं, संज्ञा शून्य-सी ज्ञात नहीं, कब होगी भोर न जाने इस प्रवाह में कितने आये, कितने बिस्वर रहे
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