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समय
, दोऊ नय सम्यक् भेदमें प्रमाण है, नय है ते तो अभिप्राय विशेष है तातै एकही अव्यक्त (निर्मल
तथा समल) रूप जानीए । ऐसे एक कालमें निर्मल अर समल जीवकी समान परणति होय रही है, है & सो जिनेंद्रदेवने कही है अर गणधरदेवने धारण (श्रद्धान ) करीहै ॥ १७ ॥
॥ अव व्यवहार कथन ॥ दोहा ।।एकरूप आतम दरव, ज्ञान चरण हग तीन । भेदभाव परिणाम यो, विवहारे सु मलिन॥१८॥ ___अर्थ-आत्मद्रव्य एकरूप है तिसमें दर्शन, ज्ञान, अर चारित्र, ऐसे तीनरूप कहना सो भेद । 1 भावके परिणामते कहना है, एक अखंड वस्तुमें गुण अर गुनीकी भेदरूप कल्पना कर तीन भेद । ६ कहना सो मलिन व्यवहार नय है ॥ १८ ॥
॥ अव निश्चयरूप कथन ॥ दोहा ।यद्यपि समल व्यवहार सो, पर्यय शक्ति अनेक । तदपि नियत नय देखिये, शुद्ध निरंजन एक १९ 8
अर्थ-अब निश्चयनय करि निर्मल स्वरूपको ध्यान करना योग्य है सो कहे है–यद्यपि व्यव* हार नयके अपेक्षासे आत्मामें अनेक शक्ति अर अनेक पर्याय दीखे है तातै ते समल है । तथापि निश्चय नयके अपेक्षासे आत्मा शुद्ध निरंजन ( कर्ममल रहित) एक रूपही है ॥ १९ ॥
___ ॥ अव शुद्ध कथन ॥ दोहा ॥६ एक देखिये जानिये, रमि.रहिये इक ठौर।समल विमल न विचारिये, यहै सिद्धि नहि और २० । है अर्थ-अब शुद्धरूप उपादेय ( ग्राह्य ) है सो कहेहै-जो एक शुद्ध चेतनामय रूपकू देखना ६ ॥१५॥ ई सो दर्शन है, शुद्ध चेतनाका जानना, सो ज्ञान है अर शुद्ध चेतना रूपमें स्थिर होना सो चारित्र है.