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श्रीप्रमृतचन्द्राचार्य विरचित- समयसारकलश पर श्री राज-मल्लकविकृत ढूंढारी भाषा-टीका का हिन्दी अनुवाद
समयसार कलश टीका
( कविवर बनारसीदास जी कृत नाटक समयसार सहित ) प्रथम अध्याय
जीव-अधिकार
नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते । चित्स्वभावाय भावाय सर्वभावान्तर च्छिदे ॥१॥
अर्थ- समस्त सत् स्वरूप पदार्थों में जो उपादेय है अर्थात् जीवद्रव्य और ऐसा जीवद्रव्य जिसने निराकुल शुद्धात्मरूप परिणमन करके अतीन्द्रिय सुख को जाना है या उस रूप अवस्था प्राप्त की है, जिसका ज्ञान चेतना ही स्वभाव सर्वस्व है और जो अतीत-अनागत-वर्तमान पर्याय सहित अनन्तगुणयुक्त जीवादि पदार्थों को एक ही समय में प्रत्यक्षरूप से जानने-देखने वाला उसको हमारा नमस्कार है ।
इस नमस्कार मंत्र में शुद्धजीव का हो हितकारी होना घटित होता है। हितकारी तो सुख होता है और अहितकारी दुःख। क्योंकि अजीब पदार्थों - पुद्गल, धर्म, बधर्म, आकाश, काल को और संसारी जीवों को सुख नहीं होता है और आत्मज्ञान भी नहीं होता है; इनका स्वरूप जान