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पुण्य-पाप एकत्व द्वार
मंदाक्रांता एको दूरात्यजति मदिरां ब्राह्मणत्वाभिमानादन्यः शूद्रः स्वयमहमिति स्नाति नित्यं तव । द्वावप्येतो युगपदुदरा निर्गतौ शूद्रिकायाः, शूद्रो साझादय च चरतो जातिभेदभ्रमेण ॥२॥
चांडालो के पेट में एक साथ जन्मे हैं इसलिए दोनों ही पुत्र चांडाल हैं। दोनों के हो चाण्डाल होने में कोई सन्देह नहीं है। परन्तु परमार्थ-शुन्य अभिमान मात्र के कारण ब्राह्मण और शूद्र आदि के वर्णभेद का भ्रम हुआ है। उनमें से एक, उपजा तो चांडालो के पेट मे है परन्तु उसका प्रतिपालन ब्राह्मण के घर में होने में वह मृगपान आदि का अति ही त्याग करता है । इतना विरक्त हो गया है कि छना भी नहीं है, उसका नाम भी नहीं लेता है, मैं ब्राह्मण हूँ ऐमा उमको पक्षपात है। दूमरा भी शूद्री के पेट में उपजा है परन्तु उसका शूद्र के यहां प्रतिपालन हुआ है ऐमा जीव मदिग को आवश्यक जान नित्य ही अति मग्न होकर पीना है । कहता है. --मैं शूद्र हूँ, मेरे कुल में मदिग योग्य है।
भावार्थ-किमी चांडाली के दो युगलिया पुत्र एक ही बार में जन्मे । कर्मयोग मे एक पत्र का प्रतिपालन ब्राह्मण के यहां हुआ वह नो ब्रह्मणों की क्रियाएं करने लगा। दूसरे पत्र का प्रतिपालन चांडाली के यहां हुआ तो वह चांडाल को ही क्रियाएं करने लगा। जो दोनों के वंश की उत्पत्ति का विचार किया जाए तो दोनों ही चाण्डाल हैं। वैसे ही कोई जीव दया-व्रतशील-संयम में मग्न है उसके शुभ कर्म का ही बन्ध होता है और कोई जीव हिंसा-विषय-कषाय में मग्न है उमको पाप का बन्ध ही होता है। मां दोनों ही अपनी-अपनी क्रियाओं में मग्न है। दोनों ही मिथ्यादृष्टिपने सेगमा मानते हैं कि शुभ कर्म भला है, अशभ कर्म बुरा है। मोमे दोनों ही जीव मिथ्यादृष्टि हैं। दोनों ही जीव कर्म-बन्ध करने वाले हैं। जैसे जो शूद्रो के पेट से उपजा वह, इस ममं को तो जानता नहीं, परन्तु कहता है में ब्राह्मण हं, हमारे कल में मदिरा निषिद्ध है "मा जान कर मदिरा छोडना है तो भी विचार करो नो वह चांडाल ही है। उसी प्रकार कोई जीव शुभोपयोगी होकर यति क्रियाओं में मग्न होता हुबा शुद्धोपयोग को नहीं जानता है-मात्र गति क्रियाबों में ही मग्न है- ऐसा जीव यह मानता है कि मैं तो मुनीश्वर