________________
१८
मममगार कलाका
शून्य हिथे करन करे परि,
मो मठ जीव न होय विरागो॥ तपाई गोबिन मान किया प्रवगाह । ओ दिन क्रिया मोन पर चाहे।
को दिन मोक्ष की मैं मृविया ।मो प्रजान मूदन में मूलिया।
मंदाक्रांता प्रासमागत्प्रतिपदममी गगिगो नित्यमनाः मुप्ता यस्मिन्नपदमपदं तहिनुध्यध्वमन्याः एततेतः पदमिमिदं यत्र चंतन्यधातुः
शवः शुद्धः स्वरसमरतः स्थायिभावत्वमेति ॥६॥
है मुद्ध बाप के अनुभव में गन्य जीवगांग ! यह पयका जान लो कि कम क. उदय में होने वाली चार गनिम्पपयांय नया गगादि अशुद्ध परिणाम तपा इन्द्रिय विषयनित मन-दम् इत्यादि कुछ भी मवंथा जीव स्वरूप नही है, नहीं है । ये जो कुछ भी है मर कम के मांग की उपाधि है। यह मा मायाजाल है कि कम क. उदय जनित अगड पाया में प्रत्यक्षरूप में रंजाय. मान होने वाल जीव अनादिकाल में लेकर उमाकर अपने आप को अनुभव कर रहे है।
भावार्थ- अनादिकाल मलकर मा म्वाद मवंथा मिथ्यावृष्टि जीव आस्वादन कर रहा है कि मै देव हू, मनुष्य ह. मुखी हूं. दुखी हूं । इस प्रकार पर्याय मात्र को अपने रूप अनुभव कर रहा है। परन्तु यह सब जीव राशि बंसा अनुभव कर रहा है मो मब मूठा है, जीव का तो स्वरूप नहीं है। वह सब जीव राशि बंसी भी पर्याय लेती है उम हो रूप में सी मतवाली हो रही है कि किसी भी ममय किमी भी उपाय में उसका मतवालापन नहीं उतरता। आचार्य गुरचंतन्य स्वरूप का दिमा कर कहते है-जोन पर्याय मात्र धारण की है, म्वय उमी मागं पर मत जा। क्योंकि वह नेरा मार्ग नही है, नहीं है। इस मार्ग पर आ, अरे आ, क्योकि तेरा मार्ग यहां है, यहां है, जहाँ चेतनामात्र वस्तु का स्वरूप अत्यन्त गड, सर्वथा प्रकार सवं उपाधियों से रहित है। मात्र कहने के लिए ही नहीं, चेतन स्वरूप नो वास्तव में सत्य स्वरूप वस्तु है। इसलिए नित्य है-शाश्वत है। भावार्थ-जिस पर्याय को मिप्याटि जोब अपने कप मानता है वह मब बिनागवान है