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ममयसार कलशटोका मगुरु कहे जीव है, मरीव निजाधीन, एक प्रविनावर बरस दृष्टि बोजिए। जीव पराधीन भणभंगुर अनेक रूप,
नांहीं जहां नहां पर प्रमाण कीजिए । मया-द्रव्य क्षेत्र कान भाव चागे मेद वस्तु हो में,
अपने चतुष्क वस्तु प्रतिस्प मानिये । पर के चतुरक वस्तु नास्ति मिलत अंग, ताको भेद द्रव्य परजाय मध्य जानिए ।
दरबनो वन क्षेत्र गना भूमि कालचाल, म्वभाव महज मूल मकति ववानिये। पाही भांति पर विकलप बडि कलपना,
व्यवहार दृष्टि प्रा मेद परमानिये॥ दोहा--है नाहीं नाहीं मृ है है नांही नारि ।
यह मावंगी नय धनी, मर माने मब मांहि ।। मया - मान को कारण य प्रातमा त्रिलोकमा,
संयमों अनेक ज्ञान मेल जय छांही। जों लोंबतों लोमान मवं वं में विज्ञान, मंय क्षेत्र मान जान जोय वस्तु नहीं है।
देह नमे जोर नमे दे: उपजत नसे, पानमा पतन है मता प्रंश मांही है। जीव भरणभंगुर प्रनायक स्वापी मान,
ऐमो ऐसो एकान्त अवस्था मूड पाहीं है। कोउ मूह कहै जैसे प्रथम मवारि भोति, पोखे ताके ऊपर मुचित्र पाइयो लेखिए। संसे मूल कारण प्रगट घट पट असो, तमो तहां मानरूप कारिज बिसेखिए ।
जानी कहे जसो बस्तु तंसा हो स्वभाव ताको, नातेजान अब भिन्न भिन्न पर पेखिए। कारण कारिज होउ एकहो में निापाय, सरो मत सांचो व्यवहार दृष्टि देखिए ॥२॥