Book Title: Samaysaar Kalash Tika
Author(s): Mahendrasen Jaini
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 263
________________ स्यावाद अधिकार परम प्रयोग कहे ऐसो सो न बने बात, जैसे बिन परकाश सूरज न मानिए। से बिन नायक शकनिन कहावेज्ञान, यह तो न परोक्ष परतभ परमानिए ॥१५॥ इत्यनानविमूढ़ानां जानमात्र प्रसाधयन् प्रा मतत्वमनेकान्तः स्वयमेवानुभूयते ॥१६॥ पूर्वोक्त एकातवाद म जी मिथ्यादृष्टि जावरानि मग्न हो रही थी उसको अवध्य हा प्राक्त प्रकार वणित अनेकान्न अथवा ग्याद्वाद अपने प्रताप ग बनान् अगाकार करना ही पड़ेगा। भावार्थ -स्यावाद प्रमाण है जिसका गुनने मात्र गएकान्लवादी भी अंगीकार करता है । म्याद्वारा प्रमाणित करता है कि जीव नेतना मम्म है। भावार्थ-जीव वस्तु ज्ञान मात्र गा म्यादादा मिद्ध कर माना है एकान्तवादी नही ।।१६।। रोहा-इहविधि प्रातम जान हित, स्पानाव परमारण । जाके वचन विचार गों, मूरख होर मुनान ॥१६॥ एवं तस्वध्यवरित्या स्वं व्यवस्थापयन् स्वयम् । मलध्यं शासनं जनमनेकान्तो व्यवस्थितः ॥१७॥ म्याद्वाद को कहने का आरम्भ किया था मानना कहने में पूर्ण हमा। वह अरकान अग्ने अनकानन का अनकनान द्वारा बरजा मे प्रमाण करना है, जांच के बरा का माना है, व.मज वानराग प्रणीन है ओर उसका उपदेश अमिट है ॥१७॥ दोहा-स्यावाद प्रासम दशा, ता कारन बनवान । शिवमाधकबाधारहिम, अब प्रतिमान ॥१७॥ ॥ इति एकादशम अध्यायः ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278