________________ 24 समयसार कलम टोका प्रन्थकर्ता का नाम अमृनचन्द्रमूरि है। यह नाटक ममयसार उनका कर्तव्य नहीं है। भावार्थ --इम प्रकार है कि नाटक ममयमार ग्रन्थ की टीका के कर्ता अमनचन्द्र नामक आचार्य प्रगट है तथापि व महान है, बड़े है, संसार में विरक्त हैं इसलिए ग्रन्थ करने का अभिमान नहीं करते है। द्वादशांगरुप मूत्र अनादि निधन है, किसी ने किया नहीं है सा जान कर अमृतचन्द्रमूरि ने अपने को ग्रंथ का कतां नहीं माना है, कारण कि शद्ध जीव. स्वरूप की नाटक समसार नामक ग्रन्थम्प व्याच्या ऐसी वचनात्मक सन्दराशि में की गई है जिसमें स्वयं अथं की मूचित करने की क्ति है और जिसके द्वारा जीवादि पदार्थों का द्रव्य-गण-पयांयरूप, उत्पाद व्यय ध्रीव्य रूप अथवा हेय उपादेय रूप निश्चय ही प्रकाशमान हुआ है // 16 // दोहा-अमृतचन्द्र मुनिराजकृत, पुरण भयो गरंथ / समयसार नाटक प्रगट, पंचम गति को पंथ // 16 // / / इतिश्री अमतचंद्र कृत समयसार की राजमलनीय टीका समाप्त / /