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माध्य-साधक अधिकार
२४१ विचारने पर ग्वकालमात्र है व ग्वभावका में विचरने पर स्वभावमात्र है। इम कारण मा कहा कि जो वस्तु है वह अखण्डित है । अखण्डित शब्द का ऐमा अर्थ है ॥८॥ मक्या-जैसे एक पाको पाम्रफल ताके चार अंश,
रस जाली गुठली छोलक जब मानिये। ये तो न बने 4 ऐसे बने जैसे वह फल, रूप रस गन्ध फास प्रवण्ड प्रमानिये॥
तमे एक जीव को दग्ब क्षेत्र काल भाव, ग्रंश मेव करि भिन्न-भिन्न न बवानिये। द्रव्यम्प क्षेत्ररूप कालरूप भावरूप, चारों रूप प्रलव प्रखण्ड ससा मानिये।।
शालिनी योऽयं भावो जानमात्रोऽहमस्मि, जयो जेय ज्ञानमात्रः स न । जेयो जेयज्ञानकल्लोलवल्गन्, ज्ञान यज्ञातृमवस्तुमात्रः ॥६॥
जय ज्ञायक मम्बन के ऊपर बहत भ्रान्ति चलती है मा कोई मा ममझगा कि जीव वस्तु जायक व पदगल मकर भिन्न रूप-- छ: द्रव्य पर्यन्त गव जंय है। मा एमा नं! नहीं है । जैमा यही कहने है वैसा है-मैं जो काई चंतना सर्वस्व मा वस्तुप वह में जयरूप हैं परन्तु अपने जीव में भिन्न छह द्रव्यों के समूह का जानपना मात्र मा जयरूप नहीं है।
भावार्थ-इम प्रकार है कि मैं जायक और ममम्न छह द्रव्य मेरे अय-मा नी नहीं है। बल्कि जान अयान जानपनापशक्ति,य अर्थात जानने योग्य शक्ति और ज्ञाना अर्थात् अनकनक्ति विराजमान वस्तुमात्र
से तीन भेट मेग म्वरूपमात्र है, मैं ऐसा जय रूप है। भावापं-- इस प्रकार है कि मैं अपने बाप को वंद्य वेदक कप में जानता है इसलिए मेरा नाम जान। मैं आप अपने द्वारा जानन योग्य हैं इमीलिए मेरा नाम जय, एसी दो शक्तियों में लेकर अनन्त गक्ति पर इमीला मेरा नाम ज्ञाताऐसा नाम भेद है, वस्तु मंद नहीं है। जीव जायक है ओर जीव य रूप है-एसा जो वचन भेद उसमे में मंद को प्राप्त होना है। भावार्थवचन का भंद है । वस्तु का भेद नहीं है ॥६॥