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समयसार कनटोका ते साधकत्वमधिगम्य भवन्ति सिखा
मूढास्त्वमूमनुपलभ्य परिभ्रमन्ति ॥३॥ गदम्बा के अनुभव गभिन सम्यग्दर्शन जान चारित्रमयो कारण रत्नत्रया जिनका मामा परिणमा है वे जीव सकल कर्मकलंक में रहित माक्षपद को प्राप्त होते हैं। वे 'चनना है सर्वस्व जिसका' एमे जवद्रव्य के निविकल्प अनुभव का माक्ष का कारणका अवस्था को प्राप्त होते हैं अर्थात् एकाग्र हाकर उस भूमिका परिणमन है जा भूमि निद्वंदरूप सुखभित है ओर अनन्त काल भ्रमण करने हा कालत्रि का पाकर उनका मिथ्यात्वरूप विभाव परिणाम मिट गया है।
भावायं-गमा जय मानका साधक होता है । कहे हए अथं को दृढ़ करते है-जिनका जाववस्तु का अनुभव नहीं है ऐसे मिथ्यादष्टि जीव शुद्ध जीवस्वरूप के अनुभव र अवस्या का पाये बिना चतुगंति संसार में रुलत हैं। भावार्थ-गद्ध जीवस्वरूप का अनुभव हा माक्ष का मार्ग है, दूसरा कोई मोक्ष मागं नहीं है ॥३॥ सबंया-चाक सो फिरत जाको ससार निकट प्रायो,
पायो जिन्ह सम्यक्त्व मिथ्यात्व नाश करिके । निरहंद मनसा मुभूमि साधि लीनो जिन्ह, कीनी मोक्ष कारण प्रवस्था ध्यान धरिके।
सोही शुख अनुभौषभ्यासी अविनाशी भयो, गयो ताको करम भरम रोग गरिक । मिथ्याति प्रपनो स्वरूप न पिछाने तास, डोले जग जाल में प्रनन्त काल भरिके ॥३॥
वसन्ततलिका स्थावाद कौशल सुनिश्चलसंयमभ्यां यो भाषयस्यहरहः स्वमिहोपयुक्तः । ज्ञानक्रियानयपरस्परतीवमंत्री
पातीकृतः श्रयति भूमिमिमां स एकः ॥४॥ उसी जाति का जीव प्रत्यक्ष शुद्धस्वरूप के अनुभवल्प अवस्था के अवलम्बन के योग्य है अर्थात ऐसी अवस्था रूप परिणमने का पात्र हैजा