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म्यादाद अधिकार बाया कोमो छलकींधो माया कोमोरपंच, काया में ममा फिरि कायाकों न धरेगो।।
मुधो को देरमों प्रध्यापक मरव जीव,
गर्म पाय परको ममस्व पगिरेगो। अपने स्वभाव प्राइ धारणा धरा में धाड,
प्रापमें मगन के प्राप शुद्ध करेगो।। दोहा--ज्यों नन कंचुक त्यागमों. विनमे नाहि भजंग।
त्यों शोर के नाम ने, प्रलय प्रबंडित अंग ॥१०॥
स्रग्धरा प्रर्यालम्बनकाल एवं कलयन जानस्य सत्वं बहिमैयालम्बनलालमेन मनमा भ्राम्यन्पशुनंश्यति । नास्तित्वं परकालतोऽस्य कलयन स्याद्वादवेदी पुनस्तिष्ठत्यात्मनिवातनित्यमहजनानकपुंजी भवन् ॥११॥
कोई मिथ्याटि एकानवादी मा है जो वम्न को द्रव्य मात्र मानता है. पर्याय नहीं मानता है । जान जग की अनेक अवस्थाओं को जानना हा उनकी आकृति मत परिणमन करता है । व मय जो ज्ञान की पर्याय है उन्हीं का मिथ्यादष्टि जीव जान का अग्निन्य मानना है। उनके ममाधान के लिए कहते है कि जंय की आकृतिया में परिणमन करता हई जितनी जान की पर्याय है, उनमें ज्ञान का अग्निवाना नहीं है। एकानवादा का निश्चयप में अभिप्राय है, कि जंय का प्राश्रय पाकर ही जान की मना है म मिथ्यावष्टि एकानवादी के मन में बम्प में बाहर भ्रम उपमा है इसलिए वह वस्नु म्वरूप को माधन में भ्रष्ट है । वह अनुभव करता है कि जीवादि ममम्तय वन को जिम ममय जान जानता है उसी ममय जानमात्र बम्त का अग्नित्व है। एकानवादीमा मानना है वैमी बम्नथिन नही, मी स्यावादी मानता है वैमी है। अनेकालवादी वस्तु बम्प के माधने में समर्थ है। म्यादादी जानमात्र जीव वग्न की जयावग्या के जानपने में नास्तिपने की प्रतीति करता है। ज्ञानमात्र जीव वम्न अनादि में एक बम्नुरूप है, अविनश्वर है, बिना कोई उपाय किए महज ही उमका प्रेमा म्वभाव है। स्याद्वादी बनुभव