Book Title: Samaysaar Kalash Tika
Author(s): Mahendrasen Jaini
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 259
________________ स्याद्वार माधिकार २२९ भावार्थ---एकांतवादी म्वरूप को सत्ता को नहीं मानता। इसका म्यानादी समाधान करता है। जैसा एकांतवादी मानता है, वैसा नहीं है। म्याहादी अर्यात अनेकान्तवादी विनाश को प्राप्त नहीं होता। भावा...वह जानमात्र वस्तु को मता को साध सकता है। अनेकान्सवादो जीव में म्वभाव -शक्तिमात्र ज्ञानवस्तु के अग्निब से सम्बन्धित अनुभव दुह किया है। जितने भी अपनी-अपनी भक्ति में विराजमान ज्ञेय रूप जीवादि पदार्थ है उनकी मसा की आकृति रूप जो जीव के ज्ञानगुण की पर्याय ने परिणमन किया है उससे ज्ञान मात्र को सता भिन्न है ऐसा वह अनुभवना है ॥१२॥ संबंया-कोउ पक्षपाती जोब कहे य के प्राकार, परिणयो मान ताते चेतना प्रमत है। धेयके नसतचेतना को नाश ताकारण, मात्मा प्रवेतन त्रिकाल मेरे मत है। पंडित कहत मान महज प्रखंडित है, भयको प्राकार परे यसों बिरत है। चेतना के नाश होत सता को विनाश होय, याते जान चेतना प्रमाण जीव सत है ॥१२॥ शार्दूलविक्रीड़ित प्रध्यास्यात्मनि सर्वभावमवनं शुद्धस्वभावच्युतः सत्राप्यनिवारितो गतमयः स्वरं पशः कोऽति । स्याद्वारा तु विशुन एन लसति स्वस्य स्वमा मरा. बादः परमावभावविरहन्यालोकनिष्कम्पितः ॥१३॥ कोई एकातवादो मिथ्यादृष्टि जीव ऐसा है जो वस्तु को द्रव्य मात्र मानता है, पायल नहीं मानता है। जितनी भी भय वस्तु हैं उनकी अनन्त गस्ति हैं उनको जानता हवामान अंय की शक्ति की आकृतिम्प परिणमन करता है। उसको देख कर एकानवादी मिथ्यादष्टि जीव यह मान लता है कि जितनी जेय को शक्ति है उननी सब जान वस्तु ही है। इस बात का समाधान स्याहादी इस प्रकार करता है कि यह ना मान मात्र जीववस्तुका स्वभाव है कि समान अंय का जाने पार जानना हम उसकी प्राकृतिप परिणमन करे । परन्तु य की क्ति तो अंय में है, मान बस्नु में नहीं है।

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