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म्यादाद मधिकार
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स्वद्रव्यास्तितया निरूप्य निपुणं सवः समुन्मयता स्याद्वादी तु विशुस्योषमहसा पूर्णां भवन् जीवति ॥६॥
कोई एकान्तवादी मिथ्यादष्टि जीव ऐसा है जो पर्याय मात्र को ही वस्तुरूप मान लेता है। इसलिए जय को जानना हुआ शाम जो जयाकार परिणमा है उसकी उम पर्याय का श्रेय के अस्तित्व में अस्तित्व मानता है, अंय मे भिन्न निविकल्प जान मात्र बम्न को नहीं मानता। इसमें यह भाव पाया जाता है कि परद्रव्य के अस्तित्व में जान का अस्तित्व है, जान में अपने अस्तित्व में ज्ञान का अस्तित्व नही है। इसका यह उत्तर है किमानवस्त का अपने अस्तित्व में अस्तित्वपना है। इसके बार भद। शानमा जीव वस्त म्वद्रव्य के विचार गे अम्ति, ग्वकाल गे अम्ति, ग्वक्षत्रपने में अग्नि और व-भाव के विचार में अग्नि है। इसी प्रकार जानमात्र वस्तु परद्रव्य क विचार में नास्ति, परक्षत्र में नास्ति, परकाल मे नाम्नि तथा पर-भाव क. विचार में नाम्नि है इन लक्षण हम प्रकार है ग्य-द्रव्य-निविकल्प मात्र यस्त, ग्वारआधार मात्र वस्तु का प्रदेश, ग्यकाल-..उसकी मूल अवस्था, ग्व-भाव.. यस्त की मन्न महज शक्ति। परदप-मविकल्प भद कल्पना, पर-सत्र-जोवस्तुका आधारभूत प्रदेश निर्विकल्प वस्तु मात्र में कहा था वही प्रदेश सविकल्प भंद कल्पना के द्वार पर प्रदेशबुटिगोचर रूप में कहा जाता है, पर-काल-द्रव्य की मूल की निविकल्प अवस्था, उमकी अवस्थातर अंदरूप कल्पना फरक परकाल कहा है. पर-भाव-द्रव्य की सहमक्ति पर्यायम्प के अनेक अंगों दाग भद कल्पना । एकांतवादी मिथ्यादष्टि जीव, जीव स्वभाव को नहीं माध मकता क्योकि वह सर्व प्रकार नवज्ञान में जन्य है, निर्विकल्प वन मात्र का उम अवलोकन नहीं होता, अमहाय रूप में जेमी लिखी है. मी अमिट जयकार जो ज्ञान की पर्याय . उमीको (वन) मानना है। जानके अस्तित्वपन में वचिन एकांतवादी मिथ्यादष्टि जीव जमा कहता है वैमा नहीं है । म्यादादी मम्यकदष्टि जीव निर्विकल्प जान शक्ति मात्र वस्तु के अग्निम्व मे, मानमात्र जीव वस्तु के अनुभव के दाग निर्मल अंदमान प्रताप में, पूर्ण होता हमाझानमात्र जीव वस्तु को सिट कर सकता है, अनुभव कर सकता है। ऐमा बोध उसको नकाल प्रगट होता है ॥६॥ सया-कोर प्राको यकार मान परिणाम,
जोलों विद्यमान सोलों मान परगट है।