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स्यावाद मधिकार
२१६ वस्त को सिद्ध करने को मामश्यं को गला दिया है, नाट कर दिया है।
भावायं जानना बिभावकवर गमानायको जानना हा जय की प्राकृति का जाना।। बलका मात्र माना जाना बाना को एकान्तवादी जान बग्न का अंक मानता।। एकान्लवादी के प्रति म्यादादी जान करने का सिद्ध करना। घर पर मना वादा और पर्याय . मानना है गा म्याद्वादः गम्पनीय जानवम्त या५ पयांय ग अनक नथापि द्रव्यापम उसको अनुभव करना है। जान अनेक गएकान ना ना मानना नानावनोग आंभप्राय में उमका मदाकाल उदय मानता है तथा उगे अगटन मानता है। इम प्रकार में जान बम्न अनभव गौनर है ।।४।।
संबंया-कोउ पशु जान को अनंत विचित्रलाई देखि,
जय को प्राकार नानारूप विमनग्यो।। नाहिको विचार कहे जान की अनेक मला, गहिके एकांत पक्ष लोकनि मों लोहे।
नाको भ्रम भजियको ज्ञानवंत को जान, प्रगम प्रगाय निगवाध रम भरयो है। मायक स्वभाव परयायमों अनेक भयो, पपि, तथापि एकनामा नहीं टरयो॥४॥
शार्दूलविक्रीडित अयाकारकलङ्कमेचकचिनि प्रभालनं कल्पयन्नेकापारनिकोपंया स्फुटपि मानं पशुनच्छति । वंचियेऽप्यविचित्रतामुपगनं जानं स्वतः मालितं पर्यायंस्तदनेकतां परिमृशन्पश्यत्यनेकान्तावत् ॥१५॥
काई मिथ्यादष्टि एकानवादी जीव गमा है कि वस्तु को द्रव्यरूप मात्र मानता है पर्यायम्प नहीं मानता है। वह मानता है कि जान निर्विकल्प वस्नु मात्र है, ज्ञान की पयांय जा जयाकार परिणनि कप उग नहीं मानना है इसलिए जंयवस्तु को जानते हुए जान को अगुद मानना है । मे मिथ्यादृष्टि एकानवादी के लिए स्याहादी ज्ञान का स्वभाव द्रव्यरूप में एक तथा