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स्याद्वाद अधिकार
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पाई जाती। स्याद्वादों के मन मे ज्ञान वस्तु पाई जाता है। वस्तु स्थिति जमी एकान्नवादी कहना है सा नहीं है अपितु जंगा स्याद्वाद कहता है सी है। स्याद्वादी जीव एक ही मना की द्रव्य तथा पयायस्य मानना है दलिए मध्यग्दृष्टि के मन मे पूर्ण ज्ञान वस्तु मो गंगा है. जंसा जय में होनी कही, विनशनी कही. बेसी नहीं है। एकतवादी के मन मे जा जान मूल में ही मिट गया था वह जय से भिन्न अपने आप में स्वय-सिद्ध ज्ञान म्याद्वादी के मन मे वस्तुरूप प्रगट हुआ। आदिकाल से लेकर जो ज्ञान का स्वयगिद्ध, अमिट, महज स्वभाव है उसका व्याय से विचार करके तथा अनुभव करके उसकी समा प्रगट होती है। जो वस्तु है वह वस्तु अपने स्वभाव से ही वस्तु ऐसा अनुभव करने से अनुभव भी उपजता है और युक्ति भी प्रगट होती है। अनुभव निविकल्प है। युक्ति है कि व्यष्टि से विचार कर ज्ञान वस्तु अपने स्वरूप में है औरष्ट विचार करता जय म है। जम ज्ञान वस्तु द्रव्यरूप नेता ज्ञानमात्र है परन्तु पर्याय पटमात्र है। इस तरह पर्यायरूप में देखन है ना जा घटजान कहा वह घट के होते हुए ही है,घटके बिना नहीं है। द्रव्यदृष्टि से जब अनुभव करते है तो उसे घटज्ञान रूप नहीं देखते। ज्ञान का ज्ञानमात्र देखते है जो घट में भिन्न अपने स्वरूप मात्र में व्यय-सिद्ध वस्तु है इस प्रकार अनेकान्न की साधना मे वस्तुस्वरूप मनता है। एकान्त दृष्टि में जा कहा कि घट के कारण घट ज्ञान ज्ञान वस्तु कोई बीज नहीं है मा फिर ऐसा होना चाहिए कि घट के पास बट पुरुष का जंग पट ज्ञान होता ही घट के पास जो वस्तु रक्खा ही उमा का घट जान हा जाना चाहिए। ऐसे मे सम्भ के पास घटवा हा म्भका घट ज्ञान हो जाना चाहिए परन्तु ऐसा ना नहीं दिखाई देना। हम यह भाव प्रतीन होता है कि जिसमें ज्ञान शक्ति मौजूद है उसका घट के पास बैठने से घट को देखने-विचारने में, घट ज्ञान रूप ज्ञान की पर्याय का परिणमन होता है । इस प्रकार स्याद्वाद बस्तु का माधक है, एकान्नवाद वस्तु का नाश करता है ||२||
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सर्वया - शिष्य कहे स्वामी जब स्वाधीन कि पराधीन, बोब एक है feel धनेक मानि लीजिए । जीव है मशीन कियो नाहि जगत मोहि, जब अविनश्वर कि नश्वर कहीजिए ।