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ममयमार कलश टोका ___ भावार्थ जैग आरं के बारम्बार चलने में काट जैसी पुदगल वस्तु के दो नगद हो जाते है, उसी प्रकार भंदनान के द्वारा बार-बार जीव नथा पुदगल का भिन्न-भिन्न अनुभव करने में वे भिन्न होते हैं। इसलिए भेदज्ञान उपादय है ॥२॥ दोहा-बंध द्वार पूरण भयो, जो दुःख दोष निदान ।
प्रब वररणं, संक्षेप सों, मोमवार मुखथान ।। मया--भेदज्ञान प्रागमों दुफारा कर मानी जीव ।
प्रातम करम धाग भिन्न-भिन्न चर। अनुभौ प्रभ्याम लहै परम धरम गहै, करम भग्मको खजानो खोलि खरचं ॥
योंही मोन मुम्ब घावं केवल निकट प्रावं, पूरग्ग समाधि लहै परमको परवं । भयो निग्दौर याहि करनो न कछौर, ऐमो विश्वनाथ ताहि बनाईस प्ररचे ॥१॥
स्त्रग्धरा प्रजाच्छेत्री शितेयं कथमपि निपुर्णः पातिता सावधान: सूक्ष्मेऽन्तःसन्धिबन्धे निपतति रभसादात्ममोभयस्य । प्रात्मानं मग्नमन्तःस्थिरविशदलसद्धाम्नि चैतन्यपूरे बन्धं चाज्ञानमावे नियमितममितः कुर्वती भिन्नभिन्नौ ॥२॥
'जीवद्रव्य तथा कर्मपर्यायरूप परिणमित हआ पुदगल द्रव्य का पिंडइन दोनों का एक बंध-पर्यायम्प सम्बन्ध अनादिकाल में चला आया है। सो जीव द्रव्य अपने गद्ध स्वरूप में परिणमन कर, अनंत-चतुष्टय में परिणामत हो एवं पुद्गल द्रव्य ज्ञानावरणादि कर्मों की पर्याय को छोड़े, जीव के प्रदेशों में मर्वथा अबधरूप होकर यह सम्बन्ध छोड़े अर्थात जीव और प्रदगल दोनों भिन्न-भिन्न हो जाएँ, उमी का नाम मोक्ष है मा कहा है । इस भिन्न-भिन्न होने का कारण मोह-राग-द्वेष इत्यादि विभावरूप अशद्ध परिणति को मिटा कर जीव का गदत्वरूप परिणमन करना है। विवरण शवत्व परिणमन सर्वथा सभी कर्मों के क्षय करने का कारण है । ऐसा शद्धत्व परिणमन सर्वथा द्रव्य का स्वभाव में परिणमन रूप है, निविकल्पम्प है और इसलिए शब्दों में कह सकने की मामयं नहीं है। इस कारण इस रूप में कहते हैं-यो