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शहात्म-प्रव्य अधिकार
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मोक्षमार्गमा अनुभव नही करने । जंगे वर्तमान मर्ममि में, कितने ही मनं लोग वणि याना जंमा मोहीपरन्तपान के ऊपर के सिन्नर मात्र का ज्ञान : अपनी बदको विश करके, उम । छिलके को अपनाने है और नावना मग्म मानही गाने में ही मिथ्याजान में विकलांग वाल जिननी जन गिगामात्र को मोक्षमार्ग जानने है और आत्मा के अनभव गे सन्य सोपाई-मे मृगध धान पहिचाने । नुमनामको मेद न जाने ।
नमे मूढमती प्रवाागे। नसेन बन्ध मोक्ष विधि न्यारी॥ दोहा-जेध्यवहान मृत नर, पजयवतोमोन । गिन को बारिज किया वि. प्रवास मदीव ।।
अनुष्टुप द्रयनिगममकारमोनितंर श्यने ममयमार एव न । दलिमिह पत्किलान्यतो जानमेकमिदमेव हि स्वतः ॥४६॥
क्रियामा जनाना । निगना। धारण करणे कोई जीवोमा मानना है मे मनिह और मग मनिपना माक्ष का मार्ग मे अभिप्राय में अन्धा जीव परमार्थ दष्टि में गन्य है और उसकी गद जांच नम्न प्राप्ति-गोचर नहीं है।
भावार्थ उसका मोक्ष की प्राप्ति दुर्लभ है क्योकि मुठ मान के विमार में नो क्रियाण मनिपना जीव ग भिन्न है. गुदगल कर्म मधी है ओर माला लिग य है, एवं अनुभवगोचर' जान मात्र बस्तु ही कमत्र जीव का मरम्ब मानिा उपादेय है और वही मोक्ष का मागं ।
भावार्थ गद जाव र स्वाप का अनुभव अवश्य करना योग्य है ॥६॥ कवित---जिगरके देश पद्धि पर अन्नर, मुनि महापरिशिया प्रमाणात ।
नेशिय प्रग्य संध के करना, पग्म नाय को मेरम बाहि॥ जिनके लिए मुमति को कनिका, बाहिर किया मेव परमागह। ने सकिनी मोल माग्ग मुख, करि प्रस्थान भवम्थिति भामहि ।
मामिनी अलमलमतिवल्पविकल्पंग्नल्परमिह परमात्यतां नित्यमेकः ।