________________
एकादशम अध्याय
स्याद्वाद अधिकार
अनुष्टुप्
:
अत्र स्याद्वादशुद्ध वर्थ वस्तुतस्वव्यवस्थितिः । उपायोपेयभावश्च मनाग्भूयोऽपि चिन्त्यते ॥ १॥
जीव द्रव्य ज्ञान मात्र कहने समयसार नाम शास्त्र समान हुआ। अब इसके अतिरिक्त कुछ थोड़ा सा अर्थ और भी कहते है ।
भावार्थ - जिम गाथा सूत्र के कर्ता कुन्दकुन्दाचार्य है उनके द्वारा कही गई गाथा सूत्र का अर्थ तो सम्पूर्ण हो गया परन्तु उसके जो अमृतचंद्रमूरि टीकाकार है वह टीका पूर्ण करने के उपरांत कुछ और भी कहते हैं। क्या कहने है जीव द्रव्य का ज्ञानमात्र स्वरूप जंमा है वैसा कहते है, मोक्ष का कारण क्या है वह कहते है और मकल कर्मो का विनाश होने पर जो वस्तु निष्पन्न होती है वैसा कहते है। कहने की गरज ही गया है ' ज्ञान मात्र जीव द्रव्य में एक सत्ता होते हुए भा अस्ति-नाग्नि, एक-अनेक, नित्य-अनित्य, इत्यादि अनेकान्तपना किस प्रकार घटित होता है इस अभिप्राय को स्पष्ट करने के प्रयोजन स्वरूप कहते है । भावार्थ कोई आशंका करें कि जैन दर्शन का तो स्याद्वाद मूल है परन्तु यहां तो कहा है कि ज्ञानमात्र ही जीव द्रव्य है, तो ऐसा कहने से तो एकान्तपना हुआ, स्याद्वाद तो इसमे प्रगट नहीं हुआ । इसके उत्तर में कहते हैं कि ज्ञानमात्र ही जीव द्रव्य है ऐसा कहने में ही अनेकान्न घटित होता है। कैमे घटित होता है ? यहाँ मे आगे अब यही कहते है. सावधान होकर सुनो || १ ||
दोहा - कुन्दकुन्द नाटक विषं, कह्यो द्रव्य अधिकार । स्याद्वाद नं साधि मैं कहूं प्रवस्था द्वार ॥