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ममयसार कलश टोका और खुले भी हैं-शरीर-मन-वचन रूप नोकम से भी इसी प्रकार विचार करने में भंद की प्रतीति उपजती है। भावकर्म अर्थात् मोह-राग-द्वेषरूप अशुद्ध चेतनारूप अशद्ध परिणाम वर्तमान में जीव में एक परिणमनरूप हैं तथा अशुद्ध परिणामों में वर्तमान में जीव से एक परिणमनरूप है तथा अशुद्ध परिणामों में वर्तमान में जोव व्यापप्य-व्यापकरूप परिणमन करता है इसलिए उन परिणामों में भिन्नपने का अनुभव कठिन है तथापि मुक्ष्म संधि का भंद मिलने पर भिन्नता की प्रतीति होती है। जैसे स्फटिकमणि स्वरूप में स्वच्छ वस्तु हैं, लाल-काली-पीली पुरी (पूरक) का संयोग पाकर लाल-काली-पीली रूप में स्फटिकमणि अलकती है परन्तु वर्तमान में भी स्वरूप के विचार से स्फटिकर्माण तो म्वच्छ मात्र ही है। लाल-काली. पोली मलक पर-मयोग की उपाधि है, स्फटिकर्माण का स्वभाव नहीं है। उमी प्रकार जीव द्रव्य का म्वच्छ चेतनामात्र स्वभाव है परन्त अनादि सन्तानरूप मोहकम के उदय से माह-राग-द्वेष कप (रंगों में) अशद्ध चेतना में परिणमन करता है फिर भी वर्तमान में स्वरूप का विचार करें । जीव वस्तु तो चेतना मात्र है। उसमें मांह-गग-द्वेषरूप रंग कर्मों के उदय की उपाधि है, वस्तु का स्वभाव गुण नहीं है। इस तरह विचार करने से भिन्नता की प्रनीति उपजती है जो अनुभव गांचर है। काई पर्छ कि कितने काल तक प्रज्ञा छनी का प्रहार होने से वह जीव और कर्म का भिन्न-भिन्न करती है ? उत्तर-अति सूक्ष्म काल में एक समय में-प्रजा छनी प्रहार कर भिन्न-भिन्न करता है । आत्मानुभव में प्रवीण हैं जो सम्यकदृष्टि जीव और जिनका काल लब्धि पाकर मसार निकट है उनके द्वारा स्वरूप में प्रज्ञा छनी बैठाने से बैठती है । भावार्थ-भेदविज्ञान बुद्धिपूर्वक विकल्प है, ग्राह्यग्राहक रूप है, शुद्ध स्वरूप को भांति निविकल्प नहीं है इसीलिए वह उपायरूप है । वे सम्यक्दृष्टि जीव, जीव के स्वरूप तथा कर्म के स्वरूप के भिन्नभिन्न विचार में जागरूक हैं, प्रमादी नहीं है और वह प्रज्ञा छंनी सभी तरह जीव और कर्म को जुदा-जुदा करती है। वह स्व और पर के स्वरूप को ग्रहण करने वाला प्रकाश गुण का जो त्रिकालगोचर प्रवाह है उसमें जीव द्रव्य को एक वस्तु रूप साधती है। भावार्थ - शुद्ध चेतना मात्र जीव का स्वरूप अनुभव गोचर होता है। रागादिपना नियम से बंध का स्वभाव हैऐसा साधती है । भावार्थ रागादि अशुद्धपना कर्मबन्ध को उपाधि है जीव का स्वरूप नहीं है ऐसा अनुभव में देखने में आता है। चतन्य का अपने सब बसंख्यात प्रदेशों में एक स्वरूप है । वह सब काल में शाश्वत है, शुद्ध स्वरूप