Book Title: Samaysaar Kalash Tika
Author(s): Mahendrasen Jaini
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 235
________________ गुवात्म-दम्य अधिकार सो है जान परमारण वेतन निधान ताहि. अविनाश शि मानि सोम नायतु है ॥१॥ शार्दूलविक्रीडित अन्येभ्यो व्यतिरिक्तमात्मनियतं विभ्रत् पृथावस्तुता. मावानोज्झनशून्यमेतदमलं नानं तथावस्थितम् । मध्यान्तविभागमुक्तसहजस्फारप्रमामासुरः शुटमानधनो यथाऽस्य महिमा नित्योविस्मिति ॥४२॥ गट ज्ञान उम प्रकार प्रगट हा जिस प्रकार उसका प्रकाम आगामी अनन्न काल पर्यन्त जेमा विनम्बरमा हो गहगा। यह जान मानावरण कममन में गहन, ग्वाप न. व्याग ग पर ग्रहग म गहत, मकल पर दव्य म भिन्न मनाप को क उदगजानन भावाम भिन्न य अपने ग्वरूप म अमिट है। जान का मी महिमा कव, वनमान, पिछन्न और आगामी काल के भद म रहिन स्वभावाप अनन्त ज्ञान को गति म माला प्रकाशमान है ओर चनना का ममहहै॥॥ संबंधा-अंने निरमेल्प निहले प्रोमो, तसे निरभाब भेव कौन कहेगो। से कम रहत महित मुन ममापान, पायो निम पान फिर बाहिर न बहंगो। कबईकरावि प्रपनोम्बभावस्यागिकार, गग म गरिक न पर बस्नु गहेगी। प्रमनाम मान विद्यमान परगट भयो, याही भाति पागामी अनन्तकालरहेगो॥२॥ छंद उन्मुक्तमुन्मोज्यमशेषतस्तनपातमादेयमशेवतस्तत् । परात्मनः संहतसर्वशक्तेः पूर्णस्य साधारणमात्मनोह ॥४॥ जो जीव अपने बाप में स्थिर हमा उमका जितना भी छोरन योग्य हेय वस्तु थो, सब कट गई-कुछ छाइना बाकी नही रहा। उसी प्रकार जा पहन योग्य वा सो समस्त ग्रहण हो गया।

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