________________
१३०
ममयसार कलश टीका गोपाई-मानकला जिमके घट बागो, से ज्ग माहो महज बरगी। मानी मगन कि मुन्ब माहो, यह विपरीत मंभवं नाहीं ॥१६॥
शालविक्रीडित कर्तारं म्वफलेन यत्किल बलात्कमव ना योजयेत् कुर्वाग्ग: फलिप्सुरेव हि फलं प्राप्नोति यत्कर्मरणः । जानं मंम्तदपाम्तरागरचनो नो बध्यते कर्मग्गा कर्वाग्गोऽपि हि कम तत्फलपरित्यागंकशीलो मुनिः ॥२०॥
जय जिग गम्मष्टि जीव के गट म्वरूप का अनुभव हा है वह नानावग्णादि कमां का नहीं बाधता है। मन प्रकार की कम जानन मामग्री में आमोद जान कर हान बाल जन परिणामा में निवन वह एक मुखाय म्वभाव । यद्यपि वह निश्चय ही कमजनित मामग्री में जो भागम्य क्रिया होती है उसको करना भी.. भागना भी है।
भावार्थ ...मम्यकदष्टि जीव के विभावरूप मिथ्या परिणाम मिट गये है ओर अनाकलना के लक्षण म पुन अतीन्द्रिय मम अनुभव गावर हा है। उमन मानमय होकर गगभाव का दूर कर दिया है। कमानत जो बार गनियों को पर्याय ओर पचेन्द्रिय के भाग है व मब आकुलना के लक्षण म यस्म बाप है। सम्यकदष्ट जीव मा ही अनुभव करता है इमलिए जो भी कार माना अथवा असाताप कम के उदय मे इष्ट-कारक अथवा अनिष्टकार मामग्री प्राप्त होती है वह मर मभ्यम्दष्टि जीव के मम्मुख अनिष्टकारक है। बम किसी जीव के अगम कम र उदय में गंग, गोक. दाग्दिरा इत्यादि हो जाए तो वह उन्हें छोड़न को । उनसे बचने को) घना ( अधिक हो प्रयत्न करता है। परतु अशुभ कर्म का उदय होने में वह उनम छटना नहीं है और उम भागना ही पड़ता है। वैसे ही मम्रकदृष्टि जीव को पिछन्ने प्रमानाप परिणामों के आधीन बधे मानारूप अथवा अमाताप कर्मों के उदय मे अनेक प्रकार को विषय मामग्री प्राण हाता है । सम्यग्दृष्टि जोन उन सबका दुखाप ही अनुभव करता है और उनम बचने का पना हो प्रयन्न करता है। परन्तु अब तक अपकधणी न पद नब तक उनका घटना अशक्य है ।ग प्रकार परवन हुआ उनको भोगना है। हृदय