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ܟܪܕ
ममयमार कनगटीका
कालग मधित भाग मामग्र का भोगतं हा मा विभावमा अधांत अगद गगाटार नही हाना । जीव हव्य न मापनमा मभद स्वर परिणमन किया ? बर माया नाल का नाम क्षण म बनम्बर नहीं है । अब दाटान में बतक का गिद्ध करने । जिम बम्न क; जा मी स्वभाव है, जमा भाग्यमान है य. अनादिनिधन है | जमशन का स्वत स्वभाव है तो वह वन हाहाना है । उगः प्रकार सम्यग्दष्ट कागद परिणाम है ना ही है। म.न. ग्वभाव का और भित्र पर देने को अन्य किसी भी वम्न में किमी मा प्रकार मामथ्यं नही । भावाय ... स्वभाव मे गम्ख श्वेत है। वह काली मिट्टी खाला. या नाली मिट्टी माना है. नाना वणं का मिट्टा नाता है पगल मयर मिट्टी खाकर मद्रा र ग का नहीं हो जाना, अपने वनरूप मही रहता है वग्न का गा ही महज म्वरूप है। उसी प्रकार सम्यकदाट जीव के स्वभाव गग-दंप-मोह गहन पद परिणाम है।रोमा जीव पर्याप नाना प्रकार की अनक भाग मामग्रा भागता है ना भी उमका अपना अशद परिणाम परिणमन नही हाता। यही वम्न का स्वभाव है। इम प्रकार सम्यग्दर जीव यो का बध नही है. निजंग है ।।१८।। मा... जामें धमको नाशवानको २ पावेश,
काम पतंगन को नाश को पल में। नशाकोन भोग न मनेहको मयोग जाम, मोह पन्धकार को वियोग जाके पन में ।
जामें न तनाई नदि गग कमाई रब, लानो ममता समाधि जोग जल में । ऐसेनान दोपको मिव जगी प्रभंगरूप,
निगधार फरीदुगे है पुरगम में । अंसे और नामें तमा हो स्वभाव सर्ष, कोउम्प काहको स्वभाव न गहत है। सेब उज्जल विविष बरणं माटी भो, माटोमा न होसे नित उम्मल रहत है।
संसे मानवत नाना भोग परिषह योग, करत बिलास न मानता बहत है। मानकला नो होयाममा सुनो होय, मनी होष भवपिति बनारतो पत॥१८॥