________________
निजंग-अधिकार में तो अत्यन्न विरक्त है मामा अग्जक और भोग सामग्री को भोगते हए भी उसको कर्म का बन्ध नहीं है. निजंग।। उदाहरणार्थ .. राजा की मेवा आदि में लेकर जितनी भी कमीम को त्रिगाए है उन सब क्रियाजों को जो कोई पुरुष रजक होकर. तन्मय होकर करना है उसको जैसे राजा को मेवा में द्रव्य को प्राप्ति होती है, भमि की प्राप्ति होती है, जैसे खेती करने में अन्न की प्राप्ति हानी है चंग कनां गुमरको अवध्य ही क्रिया के फल का मयोग होता है । भावार्थ : जाक्रिया को न करे नी उमको फल को प्राप्ति नहीं होनः । उमी प्रकार मम्यकदांप्ट जोनको बन्ध नहीं होता, निजंग होती है क्योकि मम्यकदाट जीव भांग सामग्री में सन्धित क्रियाओं का कना नहीं है मलिए उसे प्रिया का फन्न नहीं है। इस प्रकार दादांत के हाग यह दया मं गप्टि जीयक नहीं होना । हम प्रकार. पल की अभिलाषा जा का पर्वाचन नाना प्रकार की क्रियाए करता है वही 'गुगल कि पल का पाता है। भावार्थ जी काई पुरुष निर्गभलाव होकर पिया करना है उमका फिर किया का फल नही है ॥२०॥ चौपाई -मूह कर्म को कर्ता हो । फल भिलाव परे फल गोवे ।।
मानो क्रिया करे फल मूनो। लगे न लेप निजंग दूनी ।। दोहा बंधे कर्ममों मर ज्या, पाट कोट तन पेम । ___म्बुले कर्ममों मर्माकतो. गोरख धंदा जेम ।।२०।।
शार्दूलविक्रीडित स्यक्तं येन फलं म कर्म करने नेति प्रतीमो वयं, किन्यस्यापि कुतोऽपि किञ्चिदपि तत्कर्मावशेनापतेत् । तस्मिन्नापतिते स्वकम्पपग्मजानम्वभाव स्थितो मानी कि कुम्नेय किन कुरुने कम्मति जानाति कः ॥२१॥
हम ऐसी तो प्रतीति न कर किजिमका कर्म के उदय में भाग मामग्री प्राप्त हुई है, परन्तु उसमें जिसने सर्वथा ममत्व छोड़ दिया है, ऐसा सम्पकदृष्टि जीव मानावरणादि कर्मों का बन्ध करता है।
भावार्य-जो कर्मक उदय में उदासीन है, उमको कर्मों का बन्ध नहीं होना-कमों को निराहोती।।परन्त यह विशेष बात है किसम्यकदृष्टि को भी पहने नई हुए मानावरमादि कमों के उदय में पंचनिन विषय