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सवर-अधिकार तब तक उस शुद्ध स्वरूप के अनुभव का अखण्डित व धाराप्रवाहरूप से आस्वादन करो, जिसका लक्षण ऊपर कह आये हैं।।
भावार्य-निरन्तर रूप से शुद्ध स्वरूप का अनुभव करना कर्तव्य है। जब सकल कर्मों का क्षय जिमका लक्षण है ऐसा मोक्ष होता है, तब समस्त विकल्प महज हो छट जाते हैं। तब तो भेदविज्ञान भो एक विकल्परूप होगा, केवलज्ञान को भांति जीव का म्वरूप नहीं। और इसलिए सहज ही नाशवान है ॥६॥ दोहा-मेव जान तबलो भलो, जबलों भक्तिन होय । परम ज्योति परगट जहाँ, तहां विकल्प न कोय ॥६॥
अनुष्टुप भेदविज्ञानतः सिद्धाः मिढा ये किल केचन । तस्यवाभावतो बद्धा बद्धा ये किल केचन ॥७॥
ममारी जीवांश में जो कोई निकट भव्य जीव हैं और जो समस्त कर्मों का क्षय करके निर्वाण पद को प्राप्त हुग, वे समम्न जीव सकल परद्रव्य में भिन्न शुद्ध स्वरूप के अनुभव । भविज्ञान) के द्वाग मोक्ष पद को प्राप्त हुए हैं।
भावार्थ-गदम्वरूप का अनुभव ही अनादिकाल में मिद एक मोक्षमागं है । जो कोई ज्ञानावग्णादि को में बधे है, व ममम्न जीव, निश्चय से, ऐसा भवज्ञान बिना हा, वध को प्राप्त होकर समार में रुलते है। भावार्थ-भंदविज्ञान मथा उपादय है ।।।। चौपाई-भेद ज्ञान मंवर जिन पायो, मो चेतन शिवरूप कहायो। मेवज्ञान जिनके घट नाही, ते जर जीव बन्धं घट माही ॥७॥
मंदाक्रांत भेवज्ञानोच्छलनकलनाच्छुद्धतत्त्वोपलम्मा. द्रागग्रामप्रलयकरणात्कर्मणां संवरेग । विभ्रत्तोषं परमममलालोकमम्लानमेकं
मानं जाने नियतमुदितं शाश्वतोटोतमेतत् ।।८।। प्रत्यक्षरूप से ऐसा ही है। (इम नरह) वह गुट चैतन्य प्रकाश प्रगट हुआ है जो अनन्नकाल में अशुट गगादि विभावरूप परिणमन कर रहा था