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ममयसार कमन टोका स्वर की प्राप्ति हाने व्यकमां नया भाव कमां का समूल विनाश होता है. --ीमा दव्य का खम्र अमिट है । आगामी अनन्तकाल तक फिर कर्म का वन्ध नहीं होता है। ऐसा जीव अपने जीवद्रव्य में भित्र जितने भी द्रव्य है उन सबमे मब प्रकार भिन्न है ॥४॥ मया--- मेदि मियान्च मु वेदि महारम,
मेहविमान कला जिनि पाई । जो प्रपनो महिमा अबधारत, म्याग करें उरमों जो पगई।
उन रोत बसे जिनके घट, होत निरंतर ज्योति मवाई । ने मनिमान मुवरणं ममान, लगे निनकों न शुभाशुभ काई ॥४॥
उपजाति सम्पद्यते संवर एष साक्षाच्छद्धात्मतत्वम्य किलोपलम्मात् । म मेव विज्ञानत एव तस्मान दविज्ञानमतीव भाव्यम् ॥५॥
इमलिए समन पर दव्य में भिन्न चैतन्य स्वरूप को मर्वथा उपादेय मान कर अष्टिन व धागवाहरूप में अनुभव करना योग्य है । शुद्ध स्वरूप के अनुभव के द्वारा शुद्ध स्वरूप निश्चय हो प्रकट होता है और जाव की शुद्ध म्वम्प की प्राप्ति के दाग ननन कर्मा के आगमन का निगेध अर्थात् मवं प्रकार संवर हाता है। भद विज्ञान यद्यपि विनाश होने वाला है नथापि उपादेय है ॥५॥ मडिल्ल -मेरमान मंवर निदान निरदोष है.
संबर सों निरजग अनुक्रम मोम है। मेव मान शिवमून जगन महि मानिए, जापि हेय है तदपि उपाय जानिए ॥५॥
अनुष्टुप मावयेद् मेदविज्ञानमिदमन्छिनधारया ।
ताचावत्पराव्युत्वा जानं जाने प्रतिष्ठते ॥६॥ जब तक आत्मा र स्वरूप में एकरूप में परिणमन न करने मगे