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बमकानोका मया ---प्रातम को प्रहित प्रध्यानम तो ,
मात्र महातम प्रयण्ट अण्डवत है। नाको विमतार गिलिव को परगट भयो, ब्रह्मण्ड को विकाम ब्रह्मण्यमण्डवन है।
जामें मबरपजों मब में मब रूपमों में, मनिमों लिप्त प्राकारा वण्डवत । मोहे जानभान शुद्ध मंबर को मेष घरे, नाको कचि रेव को हमारो दंडवत है ॥१॥
शार्दलविक्रीड़ित चंदूप्यं जहरूपतां च दधतोः कृत्वा विभाग द्वयो. रन्तरुपदारणेन परितो ज्ञानस्य रागस्य च । भेदज्ञानमुदेति निर्मलमिदं मोदध्वमध्यामिताः शुद्धज्ञानघनौघमेकमधुना मन्तो द्वितीयच्युताः २॥
दम प्रकार गग-दप-मोहम्प अगद परिणनि मे रहित, गद्ध स्वरूप के ग्राहक जान के ममद का पज. ममम्त भद विकल्प में रहित, भेदज्ञान अर्थात् जोव के गद्ध स्वरूप का अनुभव प्रकट हाता है। ज्ञानगुण मात्र तथा अशद परिणत इन दोनों के एक दूसरे में भिन्नपने (के अनुभव) मे भेदज्ञान प्रकट होता है। अन्नग्ग की मू:म अनुभवदृष्टि के द्वारा (जीव) जीव के चैतन्य मात्र स्वरूप को तथा अगदपन के जड़त्व स्वरूप को अलग-अलग कर
भावार्थ-शुद्ध जान मात्र तथा रागादि के अशुद्धपना इन दोनों का भिन्न-भिन्न अनुभव करना अति मुहम है क्योंकि गगादि अगदपना भी चेतनसा दिखाई देता है । इसलिए जंग पानी यद्यपि मिट्टी में मिल कर मला हुआ है तो भी अति सूक्ष्म दष्टि में देखने पर. स्वम्प का अनुभव करें तो जितना पच्छ है उतना ही पानी है और जितना मन है इतनी मिट्टी की उपाधि है। उसी प्रकार रागादि परिणामों के कारण ज्ञान अशुद्ध जमा दोखना है तो भी जितना ज्ञानपना है उनना हो जान है, गगादि अशुद्धपना उपाधि है। इसलिए. हे मम्यकदष्टि जीव सदध ज्ञानानुभव का आस्वादन कर । शुद्ध स्वरूप का अनुभव हो जिसका जीवन है और जो किमी हय वस्तु का अवसंबन नही लेना वही सत पुरुष है । २॥