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समयसार कलम टोका वर्णमाला के दो अर्थ है-एक तो बनावट और दूसरा समूह । वर्ष माने मंद और माला माने पंक्ति । जैसे एक ही सोना बनावट के भेद करके अनकम्प कहा जाता है ऐसे ही एक ही जीववस्तु द्रव्य-गुणपयर्यायम्प अथवा उत्पाद-व्यय-ध्रोव्यरूप से अनेकरूप कहो जाती है। इम पक्ष में जानने के लिए गुण-पर्यायरूप अथवा उत्पाद-व्यय-धोव्यरूप अथवा, दृष्टांनकी अपेक्षा, आकार भेद है। उन भंदों में भी एकरूप का अर्थ कायम है। वस्तु के विचार से भेवरूप भी वस्तु ही है, वस्तू से भिन्न भेद कोई वस्तू नहीं है। भावार्थ-यदि स्वर्णमात्र न देखा जाय, आकारभेद मात्र देखा जाय, नो आकारभेद है, सोने की ऐसी ही शक्ति है। यदि आकारभेद न देखा जाय और स्वर्णमात्र देखा जाय तो आकार भेद मठा है। उमी प्रकार जो शुद्ध जीववस्तु मात्र न देखो जाय, गुण-पर्यायमात्र अथवा उत्पाद-व्यय-ध्रोव्यमात्र देखा जाय तो गुण-पर्याय है, उत्पाद-व्ययधोव्य है। जीव वस्तु ऐसी ही है। यदि गुण-पर्याय भेद, उत्पाद-व्यय-धोव्य भेद न देखा जाय, वस्तु मात्र देखी जाय तो समस्त भंदमठा है। ऐसा अनुभव सम्यक्त्व है। आत्मज्योति चेतना लक्षण से जानी जाती है इसलिए अनुमान गोचर भी है । दूसरे पक्ष से प्रत्यक्षजानगोचर है । इसलिए भेदबुद्धि करके जीव चनना लमण से जोववस्तु को जानता है। परन्तु वस्तु विचार से इतना विकल्प भी मूठा है। शुद्ध वस्तु मात्र है-ऐसा अनुभव सम्यक्त्व है ।।८।। संबंया-जैसे बनवारी में कुधातु के मिलाप हेम,
नानाभांति भयो तथापि एक नाम है। फसिके कसोटी लोक निरसराफ ताहि नानके प्रमाण करि लेतु रेतु नाम है।
तत हो मनारि पुगत सौ संजोगी जीव, मवतवरूप में प्रस्पी महापान है। दोसपनुमान सौरोतबान ठोरठार, इसरो न मोर एकमात्मा ही राम है ।
मालिनी बन्न उपयति न नयभीरस्समेतिप्रमाणं पवचिदपि न वियो याति निक्षेपकं ।