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समयसार कलश टीका
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है। fक्त करने पर एक ही जोव में दर्शन अर्थात् सामान्यरूप से अर्थग्राहक शक्ति ज्ञान अर्थात् विशेषरूप में अर्थग्राहक शक्ति तथा चारित्र अर्थात् यन्त्र शक्ति तांना ही है इसलिए वह अनेक रूप हैऐसा व्यवहार है। और आत्मा अर्थात् चंतन द्रव्य निर्मल है तथा अपने आप से ही निर्भद है. ऐसा निश्चय नय में कहा है। इस प्रकार एक ही समय में आत्मा अनेक भी है एक भी है ऐसा प्रमाण ज्ञान ने सिद्ध होता है । ( प्रमाण कहते है उस ज्ञान को जो एक साथ अनेक धर्मो को ग्रहण करता है)
भावार्थ वस्तु को अभेद एकरूप देखना निश्चय दृष्टि है। उसे अनेक गण व स्वभावरूप देखना व्यवहारदृष्टि है। दोनोंरूप एक समय में एक साथ देखना प्रमाण दृष्टि है। आत्मा में दर्शन, ज्ञान व चारित्रगुण हैं इसलिए अनेकरूप है। वह अपने इन गुणों से अभेद है इसलिए एकरूप है। एकरूप अनुभव करना स्वानभव का साधक है ।। १६ ।।
कवित - दरमन ज्ञान चरा त्रिगुणातम, समलरूप कहिए विवहार । free दृष्टि एकरस चेतन, भेद रहित प्रविचल प्रविकार ।। सम्यकदशा प्रमाणउभयनय, निर्मल समल एक ही बार । यों समकाल जीव को परिपनि, कहें जिनंद गहे गरणधार ॥ १६ ॥
अनुष्टुप
दर्शनज्ञानचारिस्त्रिभिः परिरणतत्त्वतः ।
Reisfy frस्वभावत्वाद्वयवहारे रण मेचकः ॥१७॥ यद्यपि द्रव्य दृष्टि में जीव द्रव्य शुद्ध है तो भी गुण गुणीरूप भेद दृष्टि से वह अनेक है। उसके दर्शन ज्ञान चारित्र तान गुणरूप परिणमने के कारण भेद वृद्धि भी घटती है ||१७||
दोहा - एक रूप प्रातम दरब, ज्ञान- खररण-हग तीन ।
भेद भाव परिणाम यो, विवहारे सो मलीन ॥ १७ ॥
अनुष्टुप
परमार्थेन तु व्यक्तज्ञातृत्वज्योतिषककः । सर्व भावान्तरध्वंसिस्वभावत्वादमेचकः ॥ १८ ॥