________________
४४
समयमार कलश टीका परिणाम हैपरन्नु शुद्ध-चन- धातुमय-चिद्र प-जीव इनमे रहित शुद्धनिधिकार है।
____ भावाय ... जमे पानः यद मिट्ट ने मिलकर मैला हो रहा है तो वह मना गमिट्ट का है पानं. नही । यदि रंग को अंगीकार न कर तो बाका जो बनगा कर पानंद है। उसी प्रकार जाव की कमवध पयांय अवस्था गगाटिक का गई। उस रंग को अंगीकार न कर तो बाकी जो कुछ है. चेतनधातृमाय बग्नु । उमी व गुद्ध म्बम्प का अनुभव मम्यकदष्टि को होना है, ।।१०।। मया या घट में भ्रमरप नादि, बिलाम महा अविवेक प्रवागे।
नार्मात प्रौर म्यरूप न दीपन, पुदगन नन्य कर अति भागे। फेरत भेष दिग्वायन कोतृक, नोज लिए बग्णादि पमागे। मो. म भिन्न जुदो जड़मो. चिन-मर्गत नाटक देखन हागे ॥१२॥
पृथ्वी इत्यं ज्ञानक्रकचकलनापाटनं नायित्वा । जीवाजीवो स्फुटविघटनं नव यावत्प्रयातः ।। विश्वं व्याप्य प्रमविकमव्यक्तनिन्मात्राक्त्या ।
ज्ञातृद्रव्यं स्वयमति रमातावदुच्चंश्चकाशे ॥१३॥
चतनवस्तु वर्तमानकाल जपन में अत्यन्त आन म्वाद को लिए सर्व प्रकार प्रगट है। कैम : क्योंकि वह ममम्न जेय पदार्थों को प्रतिविबित करता है। चंतन लोक्य को कंन जानता है : वह अपनी निज शक्ति से प्रकाशमान है और ज्ञानगुण स्वभाव ने बिनोक को जानना है । पूर्वोक्त विधि में. बारंवार अभ्यास करके. भंद-बर्बाद के द्वारा जीव और अजोव को भिन्नरूप में अलग-अलग छेद कर देखता है।
प्रश्न-जोव और अजीव के ज्ञान के द्वारा तो दो भाग किए परन्तु पहले किम रूप था?
उत्तर-अनन्नकाल में मिला हुआ जीव और कर्म का एक पिण्डरूप पर्याय प्रकटरूप में कभी भिन्न-भिन्न नहीं हुआ है।
भावार्य .. जसे मोना और पापाण मिला चला आया है और है भिन्न-भिन्न रूप. परन्न अग्नि के संयांग के बिना प्रगटरूप से भिन्न होता नही । जब अग्नि का मयोग पायेगा तभी तत्काल भिन्न-भिन्न हो जायेगा।