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पा-कर्म अधिकार वह करदूति र मगनल्स, अंष भयो ममता बंधपत है ॥२२॥
प्रज्ञानमयभावानामज्ञानी व्याप्य भूमिकाः ।
द्रव्यकर्मनिमित्तानां मावानामेति हेतुताम् ॥२३॥ पहले कह आप है कि सम्यक्दृष्टि जीव तथा मिथ्यादष्टि जीव की बाहरी क्रिया एक मी है। परन्तु दोना का द्रव्य परिणमन अलग-अलग है। उनके अलग-अलग विशेष परिणमन का अब कथन करेंगे। यद्यपि उनका मवंथा ज्ञान नो न्यभनान गोत्रर हो है। मिथ्यादृष्टि जीव का द्रव्यकर्म में धागप्रवाह पनिग्नर बध होता है। पुद्गलद्रव्य की पयायम्प कार्माणवर्गणा जानावग्णाद कम पिहरूप जीव में प्रवेश कर एक क्षेत्रावगाही होकर वन्ध्र को प्राप्त होते है। जीव आर पुद्गल में परस्पर बंध्यबंधक भाव भी है नथा मिथ्याप्टि का मिथ्यान्व अथात् गगद्वष रूप परिणामबन्ध का वाहरी कारण है। जंग कलगम्प परिणमन मिट्टी करती है. उमभ कुम्भकार का परिणाम उमका बाहरी निमिन कारण है. उनमें व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध नहीं है। उसी प्रकार जानवरणादि वम पिइम्प पुद्गन्नद्रव्य म्वय ही व्याप्य-व्यापक स्प है और जीव वा अगद्ध चतनम्प मोह-राग-द्वेष- आदि परिणाम बन्ध का बाहरी निमिन कारण है ---व्याप्य-व्यापकरूप तो नहीं है। उम अगुद्ध चंतनम्प परिणाम का कारण पाकर पुदगल म्वयं हो कपिम्प परिणमन करता है।
भावार्थ- यदि कोई समझ कि जीव द्रव्य नी गट है केवल उपचार मे कम वन्ध का कारण होता है. मां गया तो नहीं स्वय अपने में ही जीव माह-गग-द्वप इन्यादि अगद चतना परिणामरूप परिणमता है इसलिए कर्म का कारण है।
कर्म के उदय की अवस्था पाकर, उसकी मगति में मध्यादष्टि जीव अगद्ध परिणामरूप परिणमन करना है-गेमी मिथ्यात्व जाति है।
भावार्थ-द्रव्य कर्म अनेक प्रकार के हैं और उनक उदय भी अनेक प्रकार के हैं। एक कर्म मा है जिमकं उदय में गरीर बनता है; एक कर्म
सा है जिसके उदय के अनमार मन, वचन, काय की रचना होती है। एक कर्म मा है जिसके उदय म मन-द ख का प्राप्ति हाती है-मे अनेक प्रकार कर्मो के उदय होने में मिथ्यादष्टि जीव कमों के उदय का अपन आप रूप