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कर्ता-कर्म-अधिकार यहाँ यदि कोई भिन्न मत का निरूपण करने के लिए कहे कि जब द्रव्य की अनन्न शक्ति है तो एक शक्ति ऐसो भो होगो कि एक द्रव्य दो द्रव्यों के परिणाम को करे। जमे जाव द्रव्य अपने अशुद्ध चेतनरूप राग-द्वेष-मोह परिणाम को व्याप्य-व्यापकरूप में करता है, वैसे ही ज्ञानवरणादि कर्मपिड को भी व्याप्य-व्यापक रूप में करे। इसका उत्तर है कि -- द्रव्य की अनन्त शक्ति तो है परन्तु ऐसी शक्ति कोई नहीं है कि जिस भाति वह अपने गुणों के साथ व्याप्य-व्यापक है उसो भाति परद्रव्य के गुणा में भा व्याप्य-व्यापकरूप हो जाए।
एक परिणाम के दो द्रव्य का नहीं है । भावार्थ मा नही है कि अशुद्ध नतनामा गग-द्वेष-माह परिणाम का जिम प्रकार व्याप्य-व्यापकरूप में जीव कता है पदगल द्रव्य भी उनी प्रकार अगद्ध चेतनारूप राग-द्वेष-मोह परिणाम का कना है। जीव द्रव्य अपने राग-द्रंप-मोह-परिणाम का कर्ता है, पुद्गल द्रव्य उनका कर्ना नहीं है।
एक द्रव्य के दो परिणाम नहीं होते। भावार्थ --मा नहीं है कि जीव द्रव्य जैसे गग-द्वंष-मांह रूप अगल चनन परिणामी का व्याप्य-व्यापक रूप में कर्ना है वैसे ही ज्ञानावरणादि अंचंतन कम का कना भी जीव है । वह तो अपने परिणाम का कर्ता है। अचेतन परिणामरूप कर्म का कर्ता जीव नहीं है।
फिर कहते हैं कि एक द्रव्य के दो क्रिया नहीं है। भावार्थ ---मा नहीं है कि जिस तरह जीव द्रव्य का चतन परिणतिर परिणमन होता है उसी तरह उसका अचंतन परिणतिम्प परिणमन होता है। इसलिए कहते है कि एक द्रव्य दो द्रव्यम्प क्या होगा, अर्थात् नहीं होगा। भावार्थ .. जीव द्रव्य एक चंतन द्रव्यरूप है। यदि वह अनेक द्रव्यरूप हो नत्र. ज्ञानावरणादि कर्म का का हो आर अपने गग-दंप-मोहम्प अगुद्ध चनन परिणाम का भी कतां हा। पर, एमा ना नहीं है। अनादि निधन जीवद्रव्य एकरूप ही है इसलिए अपने अगुद्ध चंतन परिणाम का कता है। अचनन कम का कना नहीं है। ऐसा वस्तु स्वरूप है ॥६॥ सर्वया -- एक परिणाम के न करना इग्य होय,
होय परिणाम एक द्रव्य न धरत है। एक करतूति होय द्रव्य कब न करे, दोय करतूति एक द्रव्य न करत है।