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जीव-अधिकार पूरण स्वरूप प्रति उज्ज्वल विज्ञानघन, मोको होह प्रगट विशेष निरवार मो॥१४॥
अनुष्टुप एषज्ञानघनो नित्यमात्मा मिद्धिमभोप्सुभिः
माध्यसाधकमावेन द्विधंक: ममुपास्यताम् ॥१५॥
माधक। मकल कर्मक्षय लक्षण वाले मोक्ष को उपादेयम्प अनुभव करता है। जो अपना आत्मा गिद्ध चैतन्य द्रव्य। जान अथात् म्वपरग्राहक
क्नि का पज है और ममस्त विकल्प में गहन है. उमका महाकाल अन भव कगं। दो अवस्थाओं में भंद करके मा भाव किया, कि माध्य नो मकल कर्मक्षय लक्षण मोक्ष है आर माधक है उसका कारण मद्धोपयोग लक्षण गद्धात्मानुभव ।
भावार्थ-एक ही जीवद्रव्य कारणम्प ना अपने में ही परिणमन करना है और कायर भा अपने में हा परिणमन करता है। इसम मोक्ष जाने तक द्रव्यानर का कोई चारा नहीं । इसमे गद्धानभव करिये ।।१५।। कवित-जहां ध्रव धर्म कर्मक्षय लक्षण,
मिद्धि समाधि माध्यपद सोई। शुद्धोपयोग जोग नहि मंडिन, माधक ताहि कहे मब कोई ॥
यो परतक्ष परोक्ष म्बम्प मो, माधक माध्य अवस्था दोई। दुहको एक ज्ञान मंचय करि, मेवे शिव बंछक' थिर होई ॥१५॥
अनुष्टुप दर्शनजानचारित्रमित्रत्वादेकत्वतः स्वयम्
मेचकोऽमेचकश्चापि सममात्मा प्रमारणतः ।।१६।। आत्मा अर्थात् चंतन द्रव्य एक प्रकार भी है नथा अनेक प्रकार भी
१. वांछा रखने वाला